संरक्षित वन में घुसपैठ? खलंगा के जंगलों में तारबाड़ और गेट से फैली हलचल

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खलंगा के हज़ारों साल पुराने पेड़ों पर संकट!

चालीस बीघा संरक्षित वन क्षेत्र में कैंपिंग साइट की सुगबुगाहट, स्थानीयों में रोष

देहरादून, नालापानी।
इतिहास और जैव विविधता से भरपूर खलंगा के जंगल अब एक नए संकट की चपेट में आते दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में खलंगा मार्ग पर हल्दूआम के निकट 40 बीघा संरक्षित वन क्षेत्र में तारबाड़ और गेट लगने की गतिविधि से इलाके में हलचल मच गई है। यहां कैम्पिंग साइट बनाए जाने की चर्चा ने स्थानीयों की चिंता को और गहरा कर दिया है।

एक वायरल वीडियो में एक स्थानीय महिला मौके पर मौजूद व्यक्ति से सवाल-जवाब करती नजर आ रही है, जिसमें यह स्पष्ट होता है कि जंगल के भीतर कुछ गतिविधियाँ छुपकर की जा रही हैं।

क्षेत्र की चिंता क्यों वाजिब है?

  • प्राकृतिक विरासत: खलंगा क्षेत्र में कई सैकड़ों साल पुराने वृक्ष हैं जो न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी रखते हैं।

  • ऐतिहासिक स्थल: यह क्षेत्र 1814 की अंग्रेज-गोरखा लड़ाई का गवाह रहा है। यहां खलंगा युद्ध स्मारक भी स्थित है।

  • जैव विविधता: संरक्षित वन क्षेत्र में कई दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव-जंतु पाए जाते हैं। पर्यटन विकास से इन पर खतरा मंडरा सकता है।


चार से पांच हज़ार साल पुराने पेड़ों पर खतरा

इस क्षेत्र में मौजूद हज़ारों साल पुराने साल और अन्य वृक्षों की जैविक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अहमियत है। यदि इन जंगलों में निर्माण कार्य होता है, तो इन दुर्लभ और पुरातन वृक्षों का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है

कौन है पीछे?

तारबाड़ करवा रहे हरियाणा निवासी अनिल शर्मा का कहना है कि यह भूमि उन्होंने ऋषिकेश निवासी अशोक अग्रवाल से लीज पर ली है। हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि घने जंगल में बिना पेड़ों को नुकसान पहुंचाए कैंपिंग कैसे की जाएगी, तो कोई स्पष्ट ब्लूप्रिंट उनके पास नहीं था।

प्रशासन बेखबर?

इस गंभीर मुद्दे पर जब डीएफओ अमित तंवर से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस गतिविधि की कोई जानकारी नहीं है। हालांकि उन्होंने आश्वासन दिया कि वह वन विभाग की टीम को मौके पर भेजकर जांच कराएंगे

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