उत्तराखंड शासन में मंत्रिमंडल बैठकों की प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित और पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन ने सख्त निर्देश जारी किए हैं। अब कोई भी कैबिनेट प्रस्ताव, जो बैठक से कम से कम सात दिन पहले सभी जरूरी औपचारिकताओं के साथ मंत्रिपरिषद विभाग को प्राप्त नहीं होगा, उस पर विचार नहीं किया जाएगा।
मुख्य सचिव ने सभी प्रमुख सचिवों और सचिवों को भेजे पत्र में यह स्पष्ट किया है कि कई विभाग कैबिनेट प्रस्ताव तैयार करते समय नियमों और निर्धारित प्रक्रियाओं की अनदेखी कर रहे हैं। विशेष रूप से यह प्रवृत्ति सामने आई है कि प्रस्ताव बैठक वाले दिन या एक दिन पहले भेजे जा रहे हैं, जिससे प्रस्तावों की समुचित जांच और अनुमोदन प्रभावित हो रहा है।
समय सीमा का पालन अनिवार्य
मुख्य सचिव ने कहा कि प्रस्तावों के साथ वित्त, कार्मिक और न्याय विभाग की राय तथा विभागीय मंत्री का अनुमोदन पहले से प्राप्त होना अनिवार्य है। सभी प्रस्ताव ई-मंत्रिमंडल पोर्टल पर ही भेजे जाएंगे ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता बनी रहे।
अंतिम समय के प्रस्ताव नहीं होंगे स्वीकार
मुख्य सचिव ने दो टूक कहा कि बिना उचित कारण के अंतिम समय पर भेजे गए प्रस्ताव अब सीधे अस्वीकृत कर दिए जाएंगे। यदि किसी प्रस्ताव को किसी विशेष कारण से तत्काल बैठक में लाना अनिवार्य हो, तो उसकी अपरिहार्यता का स्पष्ट उल्लेख प्रस्ताव में करना होगा।
मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने भी जताई नाराजगी
पत्र में यह भी उल्लेख है कि स्वयं मुख्यमंत्री और कई मंत्री बार-बार इस बात पर नाराजगी जता चुके हैं कि प्रस्ताव बैठक से ठीक पहले सामने लाए जाते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया बाधित होती है और कई बार असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है।
विभाग होंगे देरी के जिम्मेदार
मुख्य सचिव ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी प्रस्ताव में देरी या प्रक्रिया में कोई व्यवधान उत्पन्न होता है तो इसके लिए संबंधित विभाग की जिम्मेदारी तय की जाएगी। यह सुनिश्चित करना विभाग का दायित्व है कि सभी प्रस्ताव समयबद्ध रूप से सभी अनुमोदनों के साथ भेजे जाएं।
मुख्य सचिव के इस नए निर्देश को शासन में प्रशासनिक अनुशासन और पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे न केवल कैबिनेट की निर्णय प्रक्रिया की गुणवत्ता बेहतर होगी, बल्कि शासन की कार्यशैली में भी गति और सुव्यवस्था आएगी।
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