पंचायत चुनावों पर कानूनी पेच: हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा आरक्षण का पूरा ब्यौरा, कल होगी अगली सुनवाई

हाईकोर्ट

उत्तराखंड पंचायत चुनाव: आरक्षण विवाद पर हाईकोर्ट सख्त रुख, सरकार से ठोस तथ्य और दस्तावेज पेश करने के आदेश, गुरुवार को फिर सुनवाई

नैनीताल। उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर अब भी अनिश्चितता और विवाद की धुंध छाई हुई है। बुधवार को नैनीताल हाईकोर्ट में पंचायत चुनावों से जुड़े आरक्षण विवाद पर हुई अहम सुनवाई में कोर्ट ने सरकार के जवाब को अपर्याप्त और असंतोषजनक करार देते हुए सरकार को एक और मौका दिया है। कोर्ट ने सख्त निर्देश दिए हैं कि गुरुवार सुबह तक सभी जरूरी दस्तावेज और तथ्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए जाएं ताकि मामले का अंतिम निपटारा किया जा सके।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि अदालत का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को बाधित करना नहीं है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि पंचायत चुनाव पूरी तरह से कानूनी और निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत संपन्न हों। अदालत ने कहा कि सरकार को पहले आरक्षण व्यवस्था से जुड़ी सभी विसंगतियों और खामियों को दुरुस्त करना होगा। कोर्ट ने सरकार से पंचायतों की सीटों के आरक्षण से जुड़े नक्शे, नियमावली और अन्य आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा है। कोर्ट ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि आखिर हर पांच साल में पंचायत चुनावों की आरक्षण नियमावली में बार-बार संशोधन क्यों किया जा रहा है।

बुधवार को हुई सुनवाई दोपहर 2 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चली। इस दौरान महाधिवक्ता और याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं की दलीलें गौर से सुनी गईं। महाधिवक्ता ने चुनाव प्रक्रिया पर लगी रोक हटाने का आग्रह करते हुए सरकारी मशीनरी पर बढ़ते आर्थिक बोझ का हवाला दिया। लेकिन कोर्ट ने यह साफ किया कि वह बिना सभी तथ्यों और दस्तावेजों की गहन जांच के कोई निर्णय नहीं लेगी। अदालत ने कहा कि सरकार को गुरुवार की सुबह तक सभी शंकाओं का समाधान करने वाले पुख्ता दस्तावेज और तथ्य कोर्ट में प्रस्तुत करने होंगे।

कोर्ट ने विशेष रूप से बागेश्वर जिले की एक याचिका पर चर्चा करते हुए कहा कि वहां सीट आरक्षण में रोस्टर प्रणाली का पालन नहीं किया गया, जिससे कई अन्य जिलों और क्षेत्रों में की गई गलतियां भी उजागर हो गईं। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि किसी एक हिस्से की गलती पूरे चुनाव को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है। वहीं, सरकारी वकील इस तर्क पर अड़े रहे कि एक याचिका में उठाए गए मुद्दे के आधार पर पूरे प्रदेश के पंचायत चुनावों पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए।

इस बीच यह भी सामने आया कि पंचायत राज अधिनियम की धारा 126 के तहत पंचायत पदों के आरक्षण और आबंटन के लिए नियमावली बनाकर उसका नोटिफिकेशन किया जाना अनिवार्य था। लेकिन सरकार ने ऐसा करने के बजाय शासनादेश संख्या 822 जारी कर इतिश्री कर दी। अदालत ने इस पर भी नाराजगी जाहिर की और कहा कि बिना विधानसभा की मंजूरी के केवल शासनादेश के सहारे इस तरह की व्यवस्था को वैध नहीं माना जा सकता।

बुधवार की कार्यवाही से स्पष्ट हो गया कि हाईकोर्ट सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करने और सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने का आखिरी मौका दे रहा है। अब गुरुवार को होने वाली सुनवाई में यह तय होगा कि पंचायत चुनावों की अधिसूचना पर आगे क्या कार्रवाई होगी।

गौरतलब है कि 21 जून को राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी कर दी थी, लेकिन इसके बाद से लगातार उठ रहे आरक्षण और आबंटन से जुड़े सवालों ने राज्य सरकार और नौकरशाही को कठघरे में खड़ा कर दिया है। अगर सरकार अदालत को संतुष्ट करने में असफल रहती है, तो यह चुनाव प्रक्रिया के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है और राजनीतिक रूप से भी सरकार की स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

अब सबकी निगाहें गुरुवार की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां तय होगा कि पंचायत चुनाव समय पर हो पाएंगे या फिर आरक्षण विवाद के चलते चुनाव प्रक्रिया पर कोई और असर पड़ेगा। अदालत ने साफ कर दिया है कि पारदर्शिता और कानून का पालन सर्वोपरि है, और किसी भी प्रकार की लापरवाही या अवैध प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *