सहस्रधारा-मालदेवता में कमजोर चट्टानें ला रही आपदा का संकट

मालदेवता

कमजोर चट्टानों का भूस्खलन सहस्रधारा-मालदेवता क्षेत्र में ला रहा तबाही, अंधाधुंध विकास और जोखिमों की अनदेखी बनी सबसे बड़ी मुसीबत

देहरादून। सहस्रधारा और मालदेवता क्षेत्र में लगातार भूस्खलन और भारी बारिश के बाद तबाही का खतरा बढ़ता जा रहा है। इस क्षेत्र को भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील मानते हुए वैज्ञानिक पहले ही आगाह कर चुके थे। अब वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, सीएसआईआर-एनजीआरआई और सिक्किम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से जारी शोधपत्र में साफ कहा है कि इस इलाके में कमजोर चट्टानें, जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध विकास मिलकर खतरे को और गंभीर बना रहे हैं।

वैज्ञानिकों की चेतावनी फिर हुई सच

वैज्ञानिकों ने 2022 में मालदेवता क्षेत्र में बादल फटने से हुई तबाही पर शोध किया था। यह शोध मार्च 2023 में एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित भी हुआ था। इसमें स्पष्ट किया गया था कि मालदेवता मुख्य सीमा भ्रंश (Main Boundary Thrust) पर स्थित है, जो एक सक्रिय फॉल्ट लाइन है। इस वजह से यहां की जमीन बेहद अस्थिर है और किसी भी समय आपदा की आशंका बनी रहती है।

वाडिया इंस्टीट्यूट के तत्कालीन निदेशक कलाचंद सैन, वैज्ञानिक मनीष मेहता, विनीत कुमार और सिक्किम विश्वविद्यालय के विक्रम गुप्ता ने अपने अध्ययन में कहा था कि यहां की चट्टानें कमजोर और भुरभुरी हैं। ऊपर से ढलानें काफी तीव्र हैं, जो भूस्खलन को और खतरनाक बना देती हैं।

जलवायु परिवर्तन और अवैज्ञानिक विकास से बढ़ा संकट

वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, अस्थिर भू-भाग और अवैज्ञानिक विकास कार्यों ने मिलकर हिमालयी क्षेत्रों को “आपदाओं की प्रयोगशाला” बना दिया है। सहस्रधारा और मालदेवता में भी यही स्थिति दिखाई देती है।
नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर अवैध और अनियोजित निर्माण हो रहे हैं। कई मकान तो सीधे नदी किनारे या बीच में खड़े कर दिए गए हैं। इस तरह का निर्माण नदी के प्राकृतिक बहाव को रोक देता है। नतीजतन, बारिश के समय पानी रुकता है और बाढ़ का खतरा और बढ़ जाता है।

2020 से 2022 तक लगातार तबाही

वैज्ञानिकों ने अपने शोधपत्र में बताया कि मालदेवता की बाल्दी नदी का रास्ता पहले से ही अस्थिर था। 2020 और 2021 में भारी भूस्खलन से बड़ी मात्रा में मलबा नदी में गिरा और उसका प्रवाह बदल गया। 20 अगस्त 2022 को बादल फटने के बाद वही जमा मलबा पानी के तेज बहाव में टूटकर नीचे की ओर बहा और हजारों टन मलबे के साथ भारी तबाही का कारण बना। इस बार की आपदा भी उसी क्रम में और गंभीर होती दिखाई दे रही है।

क्या करना होगा ज़रूरी?

वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उनकी मारक क्षमता को योजनाबद्ध कदमों से कम किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने कुछ उपाय सुझाए हैं:

  • नदी किनारे निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए, खासकर निचली फ्लड टेरेस पर।

  • स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS) हर संवेदनशील इलाके में लगाए जाएं ताकि समय पर चेतावनी जारी हो सके।

  • विकास योजनाओं से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन (EIA) अनिवार्य किया जाए।

  • स्थानीय लोगों को जागरूक किया जाए कि वे नदी किनारे या असुरक्षित ढलानों पर मकान न बनाएं।

नीतिगत अनदेखी सबसे बड़ा खतरा

शोधपत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि प्राकृतिक भूगर्भीय परिस्थितियां अपनी जगह हैं, लेकिन मानवजनित लापरवाहियां स्थिति को और विकराल बना रही हैं। अंधाधुंध निर्माण, अनियंत्रित शहरीकरण और भू-वैज्ञानिक जोखिमों की लगातार अनदेखी सहस्रधारा-मालदेवता क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है

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