स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार के लिए उत्तराखंड से खूब पलायन हुआ, गांव के गांव सूने हो गए. लोग दिल्ली-बंबई जैसे महानगरों को में जा बसे. तेज़ रफ्तार इन शहरों में सुविधाएं तो मिलती हैं लेकिन जिंदगी का सुकून पीछे छूटता चला जाता है.
लेकिन भागदौड़ भरी बोझिल जिंदगी से उकता कर कुछ नौजवान अब कुदरत की गोद में सूकून से गुज़र बसर करना चाहते हैं.
ऐसा ही नौजवानों का एक जोड़ा है जो दिल्ली का मोह छोड़कर देवभूमि के पहाड़ों में आ बसा.यो विवाहित जोड़ी है अनिल चेरुकुपल्ली (Anil Cherukupalli) और उनकी पत्नी अदिति पोखरियाल (Aditi Pokhriyal) की.
इन्होंने साल 2018 दिल्ली को अलविदा कहकर उत्तराखंड के फगुनीखेत क्षेत्र में एक प्यारा सा घर बनाया. एक तरफ जहां कुछ सैलानी सैर-सपाटे के दौरान देवभूमि को कहीं कहीं गंदगी का दाग दे जाते हैं, तो वहीं ये दोनों इकोफ्रेंडली जीवन जी रहे हैं.
उन्होंने यहां 5 हज़ार फीट की ऊंचाई पर बेहद खूबसूरत Faguniya Farmstay बनाया है. जो एक 3 मंजिला खूबसूरत मकान है. इस घर के बिल्कुल सामने घना और हरा भरा जंगल मौजूद है, जबकि दूसरी तरफ खूबसूरत झरना बहता है.
ये नजारा देखकर किसी का भी मन उपवन हो जाए. ऐसा की कुछ अनिल और अदिति के साथ भी हुआ था. उन्होंने अपने इस घर को कुमांऊनी स्पर्श दिया है. जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है.
अनिल और अदिति का पहले से ही प्रकृति से खास जुड़ाव था. इसके साथ ही इस कपल ने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करते हुए वर्ल्ड लाइफ को देखा और उन्हें ट्रेवल करना भी काफी ज्यादा पसंद था.
यूं तो अनिल और अदिति को फार्मस्टे की कोई खास जानकारी नहीं थी, लेकिन उन्होंने महीनों तक रिसर्च करने के बाद पहाड़ी इलाके में घर बनाने और जीवन गुजारने के गुण सीख लिये.
पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ भूकंप प्रतिरोधी भी है. इस तरह के घरों में पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि घर के अंदर का तापमान हमेशा अनुकूल बना रहे.
इसके साथ ही घर की मजबूती का खास ख्याल रखा गया है, ताकि ये सालों साल टिक सके और इसमें प्राकृतिक संसधानों का दोबारा दोहन न करना पड़े.
सपनों के आशियाने को तैयार करने के लिए इस युगल ने दो फुट मोटी पत्थर की दीवार का निर्माण किया था, ताकि घर का तापमान हमेशा संतुलित बना रहे.
यही वजह है कि यह घर अंदर से गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म रहता है, इसके अलावा अनिल और अदिति ने घर के बॉथरूम में सेंट्रलिसेडसैर वॉटर हीटर लगाया है, जबकि बिजली के लिए इंवर्टर सिस्टम भी मौजूद है.
हालांकि यह इंवर्टर सौर ऊर्जा से चलता है और बैकअप लेता है, जो रोजाना 5 से 8 यूनिट बिजली का उत्पादन करता है.
घर में पानी का इस्तेमाल करने के लिए ग्रेटवाटर और बजरी रेत की कई परतों का निर्माण किया गया है, ताकि जमीन के अंदर धीरे-धीरे रिसने वाला पानी बर्बाद न हो और उसका सही इस्तेमाल हो सके।.
इतना ही नहीं टॉयलेट और सीवेज के काले पानी को ट्विन पिट तकनीक की मदद से अलग-अलग कर दिया जाता है, ताकि खेत की सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरुरत न पड़े. वहीं कीचन से निकलने वाले गीले कचरे से खाद में तब्दील करके खेतों में डाल दिया जाता है,
दिल्ली से आकर पहाड़ों में बसना दोनों के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था, लेकिन इस कपल ने बीतते समय के साथ कम संसाधनों का इस्तेमाल करके जीवन यापन करने की आदत डाल ली.
दोनों अपने घर पर भी हल्दी, अदरक, ककड़ी, तोरी, शिमला मिर्च, बैगन समेत कई तरह की सब्जियाँ और मसाले उगाते हैं, जो खाने की जरूरत पूरी करने के साथ-साथ कमाई का एक जरिया भी है.
इसके साथ ही उन्होंने हाल ही में Buckwheat उगाना शुरू किया है, जबकि वह बाजरे की खेती करने की भी तैयार कर रहे हैं, अनिल और अदिति चाहते हैं कि वह अपने खेत में परमाकल्चर खेती को बढ़ावा दे, ताकि अच्छी फसल तैयार की जा सके.
कुमांऊ शैली बने इस घर तैयार करने में करीब 2 साल का समय लगा था, क्योंकि उन्होंने घर के निर्माण में बारीक से बारीक चीज का ख्याल रखा था. इसके साथ ही उन्होंने घर की दीवारों और छतों को हिमालयन लैंडस्केप के डिजाइन में तैयार किया है.