वाराणसी में ऐतिहासिक इमारतों का चेहरा बदल रहा है। इन्हें संरक्षित करने की मुहिम रंग ला रही है। कभी टूटे झरोखे, जर्जर दीवारें और ऊंचे दरख्तों से खंडहर सी दिखने वाली धरोहर अब अपने पुराने स्वरूप में लौट आई है। काशी की कला, संस्कृति, परंपरा के स्वर्णिम इतिहास से रूबरू कराने लगी है। आने वाली पीढ़ियां अब इन भवनों के जरिए अपने इतिहास को देख और समझ सकेंगी।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्याल, सारनाथ स्थित पुरातात्विक धरोहर हो या गुरुधाम मंदिर और यहां की पक्का महाल की गलियां। ये अपने अंदर काशी की इतिहास को पुरा वैभव को अपने में समेटे हुए हैं। घाट, गली, मोहल्ले से लेकर सारनाथ तक और मंदिर से लेकर मकबरे तक, काशी को महादेव का ऐसा आशीर्वाद मिला है कि पूरी नगरी ही धरोहर है। विश्व धरोहर दिवस पर पेश है वाराणसी की इन्हीं धरोहरों पर आधारित रिपोर्ट।
काशी के भेलूपुर क्षेत्र में स्थित है गुरुधाम मंदिर। ये मंदिर 200 वर्ष पुराना है, इसका निर्माण 1814 में महाराजा जय नारायण घोषाल ने कराया था। यह तंत्र साधना का अहम केंद्र रहा है। यहां कभी गुरु से ईश्वर की प्राप्ति और ईश्वर से योग यानी शून्य की प्राप्ति कर लोग जीवन से मुक्ति पाते थे।
गुरुधाम मंदिर देश का पहला अनोखा शून्य मंदिर है, जिसमें अष्टकोण है। जानकारी और संरक्षण के अभाव में इस मंदिर के कुछ हिस्से खंडित हो गए। लेकिन वर्तमान में संस्कृति मंत्रालय द्वारा इसके मूल स्वरूप सुरक्षित और संरक्षित करने का प्रयास जारी है। सारनाथ भारत की ऐतिहासिक विरासत का जीता जागता उदाहरण है। भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। इतिहास के पन्नों मेें सारनाथ का प्राचीन नाम ऋषिपतन हिरनों का जंगल था। सारनाथ का मूलगंध कूटी गौतम बुद्ध का मंदिर है।
सातवीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ने इसका वर्णन भी किया है। बौद्ध समुदाय के लिए चौखंडी स्तूप पूजनीय है। यहां गौतम बुद्ध से जुड़ी कई निशानियां है, माना जाता है कि चौखंडी स्तूप का निर्माण मूलरूप से सीढ़ीदार मंदिर के रूप में किया गया था।