बुराई पर अच्छाई की जीत का यह पर्व बेहद ही खास है जहा सभी अपने अपने गमो को भुला कर एक दूसरे के साथ खुशियाँ मानते है… दीपावली का यह पावन पर्व दीयों का त्यौहार है जो अमावस्या की काली रात कोप भी जगमगा दे..
भगवान राम के वापिस अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाने वाला यह त्यौहार सभी के दिल में खास जगह रखता है….लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है।
पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दीवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई की जाती है, साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।
पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।
माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।
इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें, पूजा के समय परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होकर पूजा करे। पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
दीपावली के इस पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।