मौसम हुआ ख़राब तो बिगड़ सकते हैं जोशीमठ के हालात

 

जोशीमठ शहर के लिए आने वाले दिन और खराब हो सकते हैं। इस बीच यदि बारिश हुई तो हालात और बिगड़ सकते हैं। भू-धंसाव के बाद बनी दरारें और गहरा सकती हैं और पानी के नए स्रोत भी फूट सकते हैं। शासन-प्रशासन भी इस स्थिति को लेकर चिंतित है, लेकिन फिलहाल उसके पास कोई ठोस प्लान तैयार नहीं है। हालांकि मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में भारी बारिश की आशंका से इनकार किया है।
ग्लेशियर के साथ आए मलबे के ढेर में बसा जोशीमठ कभी एक गांव हुआ करता था, जहां पर्वतीय शैली में बने 15-20 घर थे। 1890 में लिए गए एक चित्र में इसकी तस्दीक होती है। लेकिन आज यहां 12390 भवन खड़े हैं, इनमें से कई बहुमंजिला इमारतें हैं, जिनके बोझ से शहर लगातार दबता चला गया। पूर्व में हुए कई भूवैज्ञानिक अध्ययनों में जोशीमठ में बढ़ते दबाव को लेकर हर बार चेतावनी जारी की गई। अब शासन प्रशासन के लोग भी इस बात को मान रहे हैं कि शहर का सुनियोजित ढंग से विकास नहीं हुआ है। यहां खड़े भवन बिना किसी बायलॉज के बने हैं।
सबसे अधिक खतरनाक स्थित पानी की निकासी की है। ड्रेनेज प्लान नहीं होने की वजह से शहर का पानी जमीन में रिसता रहा है। जो अब विभिन्न स्रोतों से बाहर आ रहा है। बारिश होने की स्थिति में जहां लोगों को व्यवहारिक परेशानियों से दो-चार होना पड़ेगा, वहीं दरारों के जरिए जब यह पानी जमीन में प्रवेश करेगा, तब क्या नया गुल खिलाएगा, इसको लेकर फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है।

बारिश का पानी बढ़ा सकता है भू-धंसाव
डीबीएस पीजी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ भूगर्भ विज्ञानी डॉ. एके बियानी की मानें तो जोशीमठ में अत्यधिक बारिश होने पर भू-धंसाव की गति और बढ़ सकती है। भू-धंसाव के कारण तमाम सेफ्टी टैंक भी लिकेज हुए होंगे, जिनका पानी भी रास्ता तलाशेगा। बारिश का पानी इसके साथ मिलकर नए स्रोतों को जन्म दे सकता है। इससे भू-कटाव बढ़ेगा। जोशीमठ के ज्यादातर ढलान अस्थिर हैं। यह ग्लेशियर के मलब से बने हैं, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में मोरेन कहा जाता है। ऐसी स्थिति में जब पानी को बाहर निकलने का रास्ता मिलता है, तो मिट्टी बह जाती है और बोल्डर के बीच खाली स्थान बन जाता है। इसके कारण जब यह बोल्डर खुद एडजस्ट करते हैं तो जमीन की ऊपरी परत पर दरारें उभर आती हैं।

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