9 साल बाद आज अपने मूल स्थान पर विराजमान हुई सिद्ध पीठ मां धारी देवी

21 पंडितों के द्वारा विधि विधान से 4 दिनों तक चलने वाले यज्ञ के समापन के साथ ही आज देवभूमि की रक्षक माने जाने वाली सिद्ध पीठ मां धारी देवी की मूर्ति करीब 9 साल बाद आज अपने मूल स्थान पर विराजमान हुई। मंदिर समिति ने मूर्ति स्थापना से पहले मंगलवार से शतचंडी यज्ञ का शुभारंभ किया था।

मंगलवार को प्रातः 9:00 बजे से पूजा के बाद दिन के 1:00 बजे से शतचंडी यज्ञ विधि विधान के साथ शुरू हुआ आदि शक्ति मां धारी पुजारी न्यास की पहल पर आज शुभ मुहूर्त में मां धारी देवी की मूर्ति सहित अन्य प्रतिमाओं को नए मंदिर में शिफ्ट किया गया पुजारी न्यास के सचिव जगदंबा प्रसाद पांडे और मंदिर के पुजारी लक्ष्मी प्रसाद पांडे ने बताया कि मूर्ति शिफ्ट करने से पहले विधि विधान से मंदिर में शतचंडी यज्ञ शुरू कर दिया गया था उन्होंने बताया कि आज प्रातः 9:30 बजे मां धारी देवी की मूर्ति के साथ अन्य देव मूर्तियों को उनके मूल स्थान पर स्थापित किया गया जिसके बाद मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा।

साल 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण आपदा के पीछे की वजह लोग देवी को भी मानते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि स्थानीय लोग इसका बड़ा कारण मां धारी देवी की मूर्ति को मूल स्थान से हटाना मानते हैं। जानकारी के मुताबिक साल 2013 की आपदा के बाद माता धारी की मूर्ति को अपलिफ्ट कर अस्थाई मंदिर में स्थापित किया गया था, लेकिन अब जल विद्युत परियोजना के झील में माता के मूल स्थान के ऊपर मां धारी देवी का नया मंदिर बन कर तैयार है जिसमें आज माता की मूर्ति को 9 साल बाद स्थापित किया जा रहा है।

मंदिर का इतिहास:
सिद्ध पीठ मां धारी देवी का मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल से करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है यहां भक्तों हर रोज दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं जहां हर दिन माता को अलग-अलग रूपों में भक्त देखते हैं कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद माता धारी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है मूर्ति सुबह कन्या रूप में दिखती है दिन में युवती आज शाम को एक बूढ़ी महिला के रूप में नजर आती है। आज भी भक्त लोग एक दिन में माता के इन तीनों रूपों के दर्शन करते हैं।

माता को लेकर मान्यता है कि वह चार धाम की रक्षा करती है और मां को पहाड़ों की रक्षक देवी भी माना जाता है।

श्रीनगर से 15 किलोमीटर दूर स्थित धारी देवी के संदर्भ में लोग मान्यताओं के अनुसार काली माता की मूर्ति के रूप में कालीमठ में थी जो बाढ़ के साथ बाहर यहां कल्याण नामक स्थान पर रुक गई मान्यता के अनुसार कुंजू नाम एक दिनार को रात्रि में स्वपन में देवी ने अपने को नदी से बाहर निकालने का आदेश दिया कुंजू ने सपने के आधार पर धारी देवी को अलकनंदा नदी में उस स्थान से बाहर निकाला जिसके बाद विधि-विधान पूर्वक मंदिर की यही स्थापना की गई।

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