राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के सभागार में दधीचि देह दान समिति के प्रथम वार्षिकोत्सव में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने मेडिकल कॉलेज को अपनी देहदान कर चुके 6 महादेहदानियों के परिजनों को प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।
प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि मानवता के लिये किया गया अंगदान, नेत्रदान और देहदान सबसे बड़ा महादान है, समाज हित में इससे बड़ा पुण्य का काम दूसरा नहीं हो सकता है। उन्होंने मेडिकल कॉलेजों में शोध एवं चिकित्सा शिक्षा के लिये देहदान करने वाले देहदानियों एवं उनके परिजनों के प्रति सद्भावना जताते हुये उनके द्वारा किये गये देहदान को पूरे समाज के लिये प्रेरणदायक बताया।
दून मेडिकल कॉलेज को 6 लोग अपनी देहदान कर चुके हैं जिसमें स्वर्गीय बसंत कुमार, जनार्दन पंत, जय नारायण अग्रवाल, डॉ. विजयलक्ष्मी सिंह, विजय कुमार अग्रवाल एवं श्रीमती श्यामलता गुप्ता शामिल है, जबकि 6 दर्जन से अधिक लोगों ने प्रेरित होकर अंगदान और देहदान के लिये संकल्प पत्र भरा है। जिनमें एक दिव्यांग युवा अमित अग्रवाल भी शामिल है।
नेत्रदान व देहदान के लिये संकल्प पत्र भर चुके 72 लोगों को डा. रावत के द्वारा संकल्प पत्र सौंपे गये। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जहां एक ओर तमाम धार्मिक मान्यताओं के चलते समाज के अधिकतर लोग अपने परिजनों का दाह संस्कार परम्परागत रीति-रिवाज के करते आ रहे हैं, वहीं समाज में ऐसे लोग भी हैं जो मानवहित में शोध एवं चिकित्सा के क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रही एक नई पीढ़ी के लिये अपने नेत्र, अंग एवं देह को दान करने के लिये स्वेच्छा से आगे आ रहे हैं। यह हिम्मत व प्रेरणादायक कदम है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये समिति के महासचिव एडवोकेट नीरज पाण्डेय ने बताया कि समाजहित में देहदान करके शोध एवं मेडिकल की शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र-छात्राओं को एक उच्च स्तरीय चिकित्सक बनने में योगदान दिया जा सकता है।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि मेडिकल की शिक्षा ग्रहण कर रहे प्रत्येक 10 छात्रों को मानव शरीर की संरचना समझने के लिये एक कैडेवर (पार्थिव देह) की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में मेडिकल मेडिकल कॉलेजों में पर्याप्त कैडेवर उपलब्ध नहीं हैं। समिति के प्रयासों से दून मेडिकल कॉलेज को दो माह के भीतर 5 कैडेवर उपलब्ध हो पाये हैं जिससे मेडिकल छात्र-छात्राओं को शरीर विज्ञान के अध्ययन में सुविधा रही।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता एवं एम्स ऋषिकेश के चिकित्सक डॉ. विजेन्द्र सिंह ने बताया कि मेडिकल कॉलेजों द्वारा प्राप्त पार्थिव शरीर को ससम्मान के साथ प्रिजर्व रखा जाता है। शोध एवं अध्ययन कार्य शुरू करने से पहले मेडिकल छात्र-छात्राएं व फैकल्टी पार्थिव शरीर के समक्ष एक विशेष शपथ लेने के उपरांत ही सम्मान के साथ प्रयोगात्मक कार्य शुरू करते हैं।