महिला उत्थान, नए भारत की पहचानअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का उत्सव मनाने वाला एक वैश्विक दिवस है। वैश्विक स्तर पर यह दिन लैंगिक समानता में तेजी लाने के लिए कार्रवाई का आह्वान भी करता है। दुनिया भर में आज का दिन महिलाओं के कल्याण से जुडी महत्वपूर्ण गतिविधियों के दिन के रूप देखी में देखा जाता है। विश्व के अनेक कोनो में महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने या महिलाओं की समानता के लिए रैली करने का रिवाज कई वर्षों से चल रहा हैं । 1911 में शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) हर जगह, हर समय महिलाओं की समानता को आगे बढ़ाने के लिए और इस से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण दिवस बना हुआ है। मैंने कई बार कहा है भारत में केवल एक ही दिन महिला दिवस नहीं होता भारत तो रोज महिला दिवस मनाता है। हम प्रतिदिन अपनी माता, बेटी , बहिन, पत्नी, सहकर्मी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। सामाजिक निर्माण और राष्ट्र निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए पूरा राष्ट्र उनके योगदान हेतु आभारी है।
कई बार लगता है क्या आज भी भारत में हमें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की आवश्यकता है?
। वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के अनुसार, दुख की बात है कि हममें से कोई भी अपने जीवनकाल में लैंगिक समानता नहीं देख पाएगा, और न ही हमारे बहुत से बच्चों की संभावना होगी। लैंगिक समानता एक सदी से भी अधिक समय तक हासिल नहीं की जा सकेगी। मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में मुझे भारत के शिक्षा मंत्री के रूप में नवभारत निर्माण की आधारशिला एन ई पी -2020 पर कार्य करने का अवसर मिला।
शिक्षा नीति सृजित करते समय यह बात हम भली भांति ज्ञात थे कि अगर सपनों के भारत का निर्माण करना है तो हमें शैक्षिक क्षेत्र में अपनी मातृशक्ति को बेहतर अवसर उपलब्ध करने होंगे. नयी शिक्षा नीति में हमने गंभीरता से हमने महिलाओं को अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने के विषय में सोचा है। महिलाएं एक राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे समाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं- एक पत्नी, एक माँ, एक बहन, एक नेता , एक नर्स, आदि के रूप में राष्ट्र निर्माण में संलग्न हमारी आधी आबादी पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे ग़ाड रही हैं। । एक प्रसिद्ध अनाम अफ्रीकी कहावत के लिए शिक्षा का महत्व बताता है समाज में महिलाएं- “यदि आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं, तो आप शिक्षित करते हैं व्यक्तिगत। यदि आप एक महिला को शिक्षित करते हैं, तो आप एक राष्ट्र को शिक्षित करते हैं ”।
पुराने समय में हमारी महिलाएं शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़ी होती थी जो हमारे समाज के पिछड़ेपन का मुख्या कारण था। शिक्षा एक हथियार है जो महिलाओं को राष्ट्र के लिए एक प्रगतिशील मार्ग तैयार करने का कार्य करता है । । शिक्षा एक शक्तिशाली उपकरण है जो महिलाओं में आत्मविश्वास और महत्वकांक्षा को आगे बढ़ाता है। शिक्षा ने महिलाओं को अधिकारों से अवगत करा उन्हें शोषण के खिलाफ आवाज उठाने हेतु एकजुट करने में बड़ा योगदान दिया हैं ।
महिलाओं को परिवार की रीढ़ भी माना जाता है। घरेलू कामों से लेकर बच्चों के पोषण तक, वे कई जिम्मेदारियाँ संभालती हैं। यही कारण है कि वे मल्टीटास्किंग में महान हैं और अक्सर कई कामकाजी महिलाएं पेशेवर और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के बीच कुशलता से बाजी मारती हैं। जहां शहरों में कामकाजी महिलाएं हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं कृषि कार्यों को बखूबी संभालती है । हम एक राष्ट्र के रूप में भारत को समृद्ध होने की आकांक्षा तब तक नहीं कर सकते जब तक हर लड़की को शिक्षा या अपनी पसंद बनाने की सुविधा न मिले?
। डिग्रियों की बात हो या फिर स्वर्ण पदक विजेताओं का विषय हो, औसतन साठ प्रतिशत से अधिक हमारी बेटियों का होता है। कहीं कहीं यह प्रतिशत 70-75 से अधिक हो जाता है। मैं इसे एक अत्यंत शुभ संकेत के रूप में देखता हूँ । वस्तुतः विश्व के विकसित उन्नत राष्ट्रों ने अपना गौरवमयी स्थान अपने देश की महिलाओं को समुचित आदर प्रदान करके ही हासिल किया है। राष्ट्र-निर्माण और विकास में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए, स्वामी विवेकानंद ने नारी को पुरुष के समकक्ष बताते हुए कहा था कि जिस देश में नारी का सम्मान नहीं होता, वह देश कभी भी उन्नति नहीं कर सकता। मेरा सदैव से यह मानना रहा है कि पुरुष का संपूर्ण जीवन नारी पर आधारित रहता है। कोई भी पुरुष अगर सफल है तो उसकी सफलता की निर्माणकत्री नारी है। जीवन के कल्याण-अकल्याण, सुख-दुःख, उत्थान-पतन, सफलता-असफलता, लाभ-हानि, उत्कर्ष – अपकर्ष की समूची कहानी महिलाओं से होकर गुजरती है। वैसे भी देखा जाए तो बच्चा जब से संसार में आता है, तो किशोरावस्था तक प्रथम गुरु के रूप में माँ से उसका सबसे अधिक संसर्ग होता है।
हमारी संस्कृति हमें सिखाती है, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है। आज जब समाज में विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ यक्ष प्रश्न बनकर, हमारे सम्मुख हैं तो ऐसे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है कि कैसे संस्कार देने में कमी रह गई है, जिस कारण समाज में विकृतियाँ आ रही हैं। वैदिक काल की बात करें तो घोषा, लोपामुद्रा, मुलभा, मैत्रेयी और गाय जैसी विदुषियों ने बौद्धिक और आध्यात्मिक पराकाष्ठा के नए आयाम स्थापित किए। नई शिक्षा नीति में हमारा पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि हमारी बालिकाएँ कहीं भी पीछे नहीं रहें। भारत ने जब जब अपनी महिलाओं पर , उनकी शिक्षा पर उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया तब तब देश पिछड़ा है और अवनति हुई है।
माँ, अर्थात् माता के रूप में नारी धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। माँ को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है। ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। चाहे भगवान् राम रहे हों या गणेश कार्तिकेय हों, कृष्ण हों, गुरुनानक हों, सदैव माँ के रूप में कौशल्या, पार्वती, यशोदा और तृप्ता देवी की आवश्यकता पड़ती है।
यशस्वी प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व मे हमारी सरकार ने महिला शक्ति को सशक्त कर राष्ट्र शक्ति को जागृत रखने और आगे उसे बढ़ाने का काम किया है। आजादी के इस अमृतकाल में महिलाएं, हमारी बेटियां नए-नए पराक्रम करके दिखा रही हैं। सरकार ने भी उनके सपनों को नए पंख देने का कार्य किया है। जनजातीय गौरव और महिला सशक्तिकरण की अप्रतिम उदाहरण , आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र ‘भारत’ का 15वां राष्ट्रपति बनाना है। बेटियों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सफल बनाने की मुहिम में सरकार पूरी तत्परता से उनके साथ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि नवभारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में महिला शिक्षा एक सक्षम उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती है।
नवभारत के निर्माण का नया अध्याय लिखने के लिए आवश्यक है कि हमारी प्रत्येक बेटी पढ़े और इस कुशलता से पढ़े कि वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके।
डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक”
(लेखक भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री हैं)