डीजीपी पर वन भूमि घोटाले का गंभीर आरोप
उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू के खिलाफ चार्जशीट,
12 साल बाद खुलासा – जिसने मुकदमा दर्ज कराया, वही निकला आरोपित
उत्तराखंड में वन भूमि कब्जाने के चर्चित मामले में एक बड़ा मोड़ आया है। राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बीएस सिद्धू और तत्कालीन अपर तहसीलदार शुजाउद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ विशेष जांच दल (एसआईटी) ने चार्जशीट दाखिल कर दी है। यह मामला उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित राजपुर क्षेत्र के वीरगिरवाली मौजा में वन भूमि पर कथित अवैध कब्जे से जुड़ा है। इस मामले की जांच 12 वर्षों तक चलती रही और अब जाकर इसकी परतें खुलनी शुरू हुई हैं।
मामले का संक्षिप्त विवरण
राजपुर क्षेत्र में स्थित वन भूमि को कब्जाने और अवैध रूप से अपने नाम करवाने का यह मामला वर्ष 2013 में दर्ज हुआ था। इस मुकदमे की शुरुआत नत्थूराम नामक व्यक्ति की शिकायत से हुई थी, जिसने आरोप लगाया था कि वन विभाग की भूमि को कुछ प्रभावशाली लोगों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अपने
नाम करवा लिया है। प्रारंभिक जांच में इस आरोप को गंभीरता से लिया गया और मामला दर्ज कर लिया गया। लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई।
पूर्व डीजीपी और अन्य आरोपियों की भूमिका
विशेष जांच दल (एसआईटी) की गहन जांच में यह पाया गया कि इस मामले में खुद शिकायतकर्ता नत्थूराम भी शामिल था। जांच में सामने आया कि पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू ने फर्जी दस्तावेज तैयार कर वीरगिरवाली की जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली थी। लेकिन इससे पहले, नत्थूराम ने यह जमीन किसी और को बेच दी थी। यानी कि जिस व्यक्ति ने इस पूरे मामले में शिकायत दर्ज कराई थी, वही बाद में खुद आरोपित पाया गया।
इस मामले में पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू के साथ-साथ अन्य प्रभावशाली लोगों के नाम भी सामने आए, जिनमें नत्थूराम, दीपक शर्मा, सुभाष शर्मा, स्मिता दीक्षित, चमन सिंह और प्रभुदयाल शामिल हैं। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने मिलकर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकारी वन भूमि को हड़पने की साजिश रची थी।
12 साल तक खिंचा केस, 22 विवेचक बदले गए
यह मामला शुरुआत से ही हाई-प्रोफाइल रहा। जब वर्ष 2013 में मुकदमा दर्ज हुआ, तब इसे आगे बढ़ाने में कई चुनौतियाँ सामने आईं। तत्कालीन डीजीपी बीएस सिद्धू के प्रभावशाली पद पर रहने के कारण किसी भी विवेचक ने इस केस में हाथ डालने की हिम्मत नहीं की। नतीजतन, 12 वर्षों तक यह मामला चलता रहा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी।
वर्ष 2016 में बीएस सिद्धू सेवानिवृत्त हो गए, लेकिन इसके बावजूद भी मामले की जांच धीमी रही। इस दौरान 22 विवेचक बदले गए, परंतु किसी ने भी इस केस को गंभीरता से आगे नहीं बढ़ाया। मामले की पेचीदगी और आरोपियों की ऊँची पहुँच के कारण चार्जशीट दाखिल करने में लगातार देरी होती रही।
मामले में नया मोड़: डीएफओ ने दर्ज कराई शिकायत
वर्ष 2022 में इस मामले को एक नया मोड़ मिला, जब मसूरी वन प्रभाग के तत्कालीन डीएफओ आशुतोष सिंह ने इस केस में एक बार फिर से तहरीर दी। उन्होंने राजपुर थाने में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि वीरगिरवाली क्षेत्र की वन भूमि को कुछ अधिकारियों ने कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर अपने नाम करवा लिया है और इसे राजस्व अभिलेखों में दर्ज भी करा लिया गया है। डीएफओ की इस शिकायत के बाद पुलिस विभाग हरकत में आया और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया।
एसआईटी ने इस मामले में गहन जांच की और कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए। इस दौरान यह भी सामने आया कि वर्ष 2013 में दर्ज की गई शिकायत के बावजूद, मुख्य आरोपी नत्थूराम ने पहले ही इस जमीन को किसी और को बेच दिया था। यानी कि वह भी इस साजिश में बराबर का भागीदार था।
चार्जशीट दाखिल, कानूनी प्रक्रिया तेज
वर्ष 2024 में, 12 साल की लंबी जांच के बाद, एसआईटी ने इस मामले में पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू और तत्कालीन अपर तहसीलदार शुजाउद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया।
इससे पहले, इस मामले में शामिल अन्य आरोपियों के खिलाफ भी आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका था। वहीं, कुछ आरोपियों की संलिप्तता नहीं पाए जाने के कारण उन्हें मुकदमे से बाहर कर दिया गया।