देहरादून। उत्तराखंड की भाजपा सरकार के मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने अंततः रविवार को सीएम को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं था। इसकी पटकथा निकाय चुनाव के दौरान ही लिख दी गई थी।
तीर्थनगरी ऋषिकेश, जहां का प्रेमचंद अग्रवाल विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां उन्होंने जनभावनाओं के विपरीत एक अनजान व्यक्ति को महापौर बनाने की जिद की और वहीं एक निर्णय उनकी कुंडली के आठवें भाव में राहु बन कर उपस्थित हो गया।
उनके पासवान प्रेम का नतीजा यह हुआ कि वर्षों से उनके साथ साए की तरह साथ निभाने वाले लोग छिटक कर दूर हो गए। भले ही तात्कालिक रूप से पासवान विजयी रहे लेकिन पैरों तले की जमीन उसी दिन कमजोर हो गई थी। नतीजतन उसमें धंस जाना नियति ही होती है।
रविवार को बहुत भावुकता के साथ प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने इस्तीफे की घोषणा की। हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उन्हें गिनाना पड़ा कि राज्य निर्माण आंदोलन में उनकी भागीदारी थी, लाठी खाई, जेल गए और भी बहुत कुछ। ये नहीं भूलना चाहिए कि राज्य निर्माण में हर नागरिक की भूमिका थी, लिहाजा अब ढाई दशक बीत जाने के बाद वह ढोल पीटने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। विधानसभा में मात्र एक अमर्यादित टिप्पणी उन्हें इस कदर हाशिए पर धकेल देगी, ये तब नहीं सोचा था। रविवार को जो भावुकता और रुंधे गले का इस्तेमाल हुआ यदि वह बजट सत्र में ही अभिव्यक्त हो जाता और सदन में सफाई देने के बजाय लिखित में माफी मांग ली होती तो शायद उत्तराखंड के उदार हृदय वाले लोग प्रकरण को भुला देते।
विधानसभा में ही जब अंकिता भंडारी हत्याकांड में वीआईपी के बचाव में वीआईपी रूम की बात को भी लोगों ने न चाहते हुए भुला ही दिया था।
और तो और कभी समर्थक रहे व्यक्ति की ऋषिकेश में ही सरेराह पिटाई के मामले को भी लोगों ने भुला ही दिया था, किंतु जब पहाड़ की अस्मिता को अंगुली दिखाई तो पानी सिर के ऊपर से गुजर गया। पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने का भरपूर प्रयास तक किया और जो लोग मुखर होकर अपनी बात कह रहे थे, उन्होंने सड़कछाप का विशेषण तक स्वीकार किया लेकिन बात थमी नहीं और न ही मंत्री ने विशुद्ध भाव से क्षमा ही मांगी।
सदन में यह प्रकरण उठते ही खुद सीएम धामी बोल चुके थे कि देवभूमि की अस्मिता को छिन्न भिन्न करने की प्रवृत्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी। किंतु अपने मंत्री को दूध की मक्खी की तरह तो निकाल नहीं देते, लिहाजा सैफ पैसेज देते हुए गर्म चाय को प्याली में डाला गया और थोड़ी ठंडी होने के बाद सम्मानजनक रूप से मंत्री प्रेम की विदाई हुई।
इस बीच, होली का त्यौहार भी था, इसलिए भी इंतजार किया गया।
होली की बात आई तो इस बीच गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी का होली गीत सोशल मीडिया पर सुर्खियों में रहा। ” मत मारो पिरेम लाला पिचकारी, तेरी पिचकारी म भरी छिन गाली, रंगों मा मन मैल त्विन राली राली, सुलगेगे नफरत चिंगारी।” नेगी ने गीत को विस्तार देते हुए जनभावनाओं को भी अभिव्यक्ति दी और कह दिया – “उत्तराखंडी छा हम सभी देशी पाडी, आपस म लड़ाणा छन कुछ अनाड़ी, मत मारो पिरेम लाला पिचकारी”। यह गीत होली गुजरने के बाद भी ट्रेंड करता रहा। एक तरह से विदाई समारोह के लिए यह जनदबाव ही था। लाखों लोगों ने जब गीत को शेयर किया तो देश की सीमाओं के बाहर तक गीत की गूंज कमोबेश नौछमी नारेण गीत की सी पुनरावृत्ति होती होली के दिन ही दिखने लगी थी।
इधर, रामपुर तिराहे पर शहीदों को नमन करने जे साथ ही रविवार शाम जैसे ही मंत्री के इस्तीफे की खबर जंगल की आग की तरह फैली, ऋषिकेश में जगह जगह आतिशबाजी का नजारा देखने को मिला। इसके विपरीत देहरादून में मंत्री के समर्थन में कुछ लोगों ने सोमवार को बाजार बंद करने का ऐलान कर डाला। क्रिया और प्रतिक्रिया दोनों एक साथ देखने को मिली।
ऋषिकेश में आज के प्रकरण के बाद मंत्री के योगदान का मूल्यांकन भी किया जाने लगा। लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में दो टूक कहा कि पहली निर्वाचित सरकार में शूरवीर सजवान के कार्यकाल को छोड़ दें तो बीते पंद्रह वर्षों में ऋषिकेश का कोई ठोस विकास नहीं हुआ। एक अदद एम्स केंद्र में सुषमा स्वराज के कारण ऋषिकेश को मिला, वह इसलिए कि वे उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य थी। सड़कों की मरम्मत जरूर हुई लेकिन एक भी सड़क की चौड़ाई नहीं बढ़ी।
नई सड़कें बनाई तो वह सिर्फ प्रॉपर्टी डीलरों और कॉलोनाइजर के फायदे के लिए बनी। जबकि करोड़ों रुपए खर्च होते आ रहे हैं। एक अदद पार्किंग तक ठीक से मुख्य बाजार में नहीं है। अलबत्ता नदी किनारे कच्चे पक्के मकान जरूर बने हैं और वहीं से मेयर की सीट निकालने में सफलता मिली है। विकास का कुल जमा नतीजा इसे ही गिना जा सकता है और इसका पूर्ण मूल्यांकन 2027 में होने की बात लोग कहने लगे हैं।
बहरहाल एक बात यह भी सामने आयी है कि प्रेमचंद अग्रवाल अपने लोगों के अब भी पसंदीदा हैं। गुड़ न दे पाएं लेकिन गुड़ जैसी बात करने में उनका कोई सानी नहीं है। सार्वजनिक जीवन में विरोधी होना स्वाभाविक बात है लेकिन यह भी सत्य है, जिसके जितने विरोधी वह उतना अधिक “लोकप्रिय” भी होता है और 2027 में इस लोकप्रियता का इम्तिहान होना है। शायद यही नफा नुकसान आंक कर पार्टी नेतृत्व ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया है।