सेवा अधिकरण (ट्रिब्यूनल) ने एसएसपी व आईजी के आदेश किए निरस्त

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ट्रिब्यूनल का फैसला: कांस्टेबल दिनेश कुमार को राहत
‘तथाकथित सिफारिश’ के आधार पर दंड देना अनुचित ट्रिब्यूनल

काशीपुर। उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण (ट्रिब्यूनल) की नैनीताल पीठ ने पुलिस कांस्टेबल दिनेश कुमार के खिलाफ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) उधमसिंह नगर और पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) कुमाऊं द्वारा पारित दंडात्मक आदेशों को निरस्त कर दिया है

ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा कि याची को जिस सिफारिशी पत्र के आधार पर दंडित किया गया, उसमें उल्लिखित स्थान पर वह पहले से ही तैनात था।

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अतः अनुशासनहीनता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

याची की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने अधिकरण में याचिका संख्या 21/2024 दायर की थी। याचिका में उल्लेख किया गया कि वर्ष 2021 में उधमसिंह नगर में तैनाती के दौरान विधायक डॉ. प्रेम सिंह राणा का एक पत्र वायरल हुआ, जिसमें कुछ पुलिस कर्मियों के स्थानांतरण की अनुशंसा की गई थी। इस पत्र के आधार पर एसएसपी ने जांच कराई और रिपोर्ट में बिना स्वतंत्र साक्ष्यों व याची का पक्ष सुने उसे दोषी ठहरा दिया। इसके आधार पर मार्च 2022 में याची की चरित्र पंजिका में परिनिन्दा प्रविष्टि दर्ज कर दी गई

याची की अपील आईजी कुमाऊं ने भी जुलाई 2023 में खारिज कर दी। इसके बाद ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई। अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने तर्क दिया कि अनुशंसा पत्र जिस स्थान की थी, वहां याची पहले ही तीन माह पूर्व से कार्यरत था, जिससे स्पष्ट है कि कोई सिफारिश नहीं कराई गई थी।

अधिकरण के सदस्य कैप्टन आलोक शेखर तिवारी की पीठ ने याची के पक्ष में निर्णय देते हुए एसएसपी और आईजी के आदेशों को निरस्त कर दिया। साथ ही निर्देश दिए कि आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से 30 दिवस के भीतर याची की चरित्र पंजिका से दंडात्मक प्रविष्टि हटाई जाए और समस्त सेवा लाभ प्रदान किए जाएं।

अधिकरण ने यह भी उल्लेख किया कि इसी मामले में पूर्व में कुछ अन्य पुलिस कर्मियों को भी दोषमुक्त किया जा चुका है। अतः स्पष्ट है कि यह दंड आदेश भ्रमजनक परिस्थितियों में पारित किए गए थे और इन्हें निरस्त किया जाना ही उचित है

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