राज्य आंदोलनकारियों के 10% आरक्षण पर नैनीताल हाईकोर्ट ने मांगा सरकार से विस्तृत जवाब
नैनीताल। उत्तराखंड में अलग राज्य आंदोलन में भाग लेने वाले आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण न दिए जाने के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को निर्देश दिया कि वह 2 जुलाई तक इस विषय में अपनी स्थिति स्पष्ट करे।
आंदोलनकारियों का आरोप: सरकार ने नियमावली बनाई, पर लागू नहीं की
भुवन सिंह और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2011 में एक नियमावली के तहत आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का प्रावधान किया था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह आरक्षण अब तक न तो लागू हुआ और न ही उन्हें किसी प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जा रही है।
याचिका में कहा गया है कि आंदोलनकारियों ने राज्य के गठन के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया और भारी बलिदान दिया। इसके बावजूद, उनके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार हो रहा है, जिससे वे मानसिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर प्रताड़ित महसूस कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जिन परिवारों ने आंदोलन के दौरान अपने परिजनों को खोया, उन्हें अब तक सरकारी नौकरी या कोई ठोस सहायता नहीं दी गई। उनका कहना है कि सरकार नियमावली का हवाला तो देती है, लेकिन जमीन पर उसकी कोई अनुपालना नहीं हो रही।
2017 में हाईकोर्ट ने खारिज की थी आरक्षण नीति
मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ वर्ष 2017 में आया, जब नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई आरक्षण नीति को निरस्त कर दिया था। इसके चलते आंदोलनकारियों को मिलने वाला 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण भी समाप्त हो गया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सरकार ने 2017 के बाद फिर से कानून बनाकर आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण देने की घोषणा की, परंतु यह व्यवस्था भी सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है। इसके चलते हजारों आंदोलनकारी और उनके परिजन आज भी सरकारी सेवाओं में इस लाभ से वंचित हैं।
सरकार की दलील: प्रक्रिया चल रही है, समय दिया जाए
राज्य सरकार की ओर से अदालत को अवगत कराया गया कि चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को पेंशन और अन्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। सरकारी पक्ष ने कहा कि आंदोलनकारियों को आरक्षण और अन्य लाभ देने की प्रक्रिया पर प्रशासन स्तर पर काम जारी है। इस विषय में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को भेज दी गई है।
सरकार ने यह भी बताया कि उन आंदोलनकारियों के परिवारों को मृत आश्रित कोटे के तहत सरकारी नौकरी देने की मंशा है, जिनका कोई आश्रित नहीं बचा। हालांकि, सरकार का कहना है कि पहले आंदोलनकारियों की सही पहचान और उनके दस्तावेजों का सत्यापन आवश्यक है, ताकि इस सुविधा का लाभ केवल वास्तविक पात्र व्यक्तियों को ही मिल सके। सरकार ने कोर्ट से इस प्रक्रिया के लिए और समय मांगा है।
कोर्ट ने जताया असंतोष, कहा- स्थिति स्पष्ट करें
खंडपीठ ने राज्य सरकार के जवाब से असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि यदि सरकार स्वयं नियमावली और कानून बना चुकी है, तो उसे लागू करने में इतनी देरी क्यों हो रही है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई की तिथि तक पूरी पारदर्शिता के साथ विस्तृत रिपोर्ट पेश की जाए, जिसमें अब तक किए गए कार्यों, भविष्य की योजनाओं और लागू करने की समयसीमा का स्पष्ट विवरण दिया जाए।
अदालत ने कहा कि यह मामला केवल कानून के अनुपालन का नहीं, बल्कि उन आंदोलनकारियों के सम्मान और अधिकारों का है, जिन्होंने राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। खंडपीठ ने यह भी कहा कि आंदोलनकारियों को उनके योगदान के अनुरूप सम्मान और सुविधाएं देना सरकार का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है।
मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई को नियत की गई है।
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