पंचायत चुनाव 2025 : उत्तराखंड के गुंजी और बिरगण गांवों में निर्विरोध चुने गए रिटायर्ड आईपीएस और कर्नल, लोकतंत्र को दी नई दिशा
32 हजार से ज्यादा उम्मीदवारों ने भरे पर्चे, पंचायत के 66,418 पदों पर मुकाबला
देहरादून। उत्तराखंड में पंचायत चुनाव का माहौल इस समय पूरे शबाब पर है। एक ओर जहां प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में राजनीतिक गहमा-गहमी, जोड़तोड़, गुटबाजी और दावेदारी की होड़ चरम पर है, वहीं दूसरी ओर कुमाऊं और गढ़वाल के दो छोटे गांवों ने लोकतंत्र की एक ऐसी तस्वीर पेश की है, जिसने पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश का भी ध्यान खींच लिया है।
कुमाऊं मंडल के सीमांत गांव गुंजी और गढ़वाल मंडल के बिरगण गांव के ग्रामीणों ने अपने गांवों की बागडोर उन व्यक्तित्वों को सौंपी है, जिन्होंने अपना जीवन सेवा, अनुशासन और समर्पण के लिए समर्पित किया।
निर्विरोध निर्वाचन : कानून के अनुरूप लोकतांत्रिक प्रक्रिया
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 53(2) के तहत, यदि किसी पद के लिए केवल एक ही प्रत्याशी नामांकन करता है, तो उसे निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। चुनाव आयोग भी इसे पूरी तरह नियमसम्मत और लोकतांत्रिक मानता है। उत्तराखंड के कई इलाकों, विशेषकर जौनसार-बावर जैसे जनजातीय क्षेत्रों में यह परंपरा पहले भी देखने को मिली है।
उदाहरण के तौर पर, नैनीताल जिले के एक गांव में वर्षों से ग्रामीण निर्विरोध ग्राम प्रधान चुनते आ रहे हैं। इतना ही नहीं, पिछले चुनाव में तो एक गांव में ग्राम प्रधान चुनने के लिए टॉस तक कराया गया, जिसमें गीता मेहरा को ग्राम प्रधान चुना गया था। यह घटनाएं बताती हैं कि ग्रामीणों के बीच आपसी सामंजस्य और लोकतांत्रिक समझ कितनी मजबूत है।
गुटबाज़ी और खर्च से बचने की सोच
ग्रामीणों का मानना है कि चुनावी गुटबाजी, आपसी कलह और अनावश्यक खर्च से बचने के लिए निर्विरोध निर्वाचन सबसे बेहतर विकल्प है। इससे न सिर्फ पैसे और संसाधनों की बचत होती है, बल्कि गांव का सामाजिक ताना-बाना भी मजबूत बना रहता है।
सेवा और अनुभव का नया अध्याय
लेकिन इस बार जो बात सबसे अलग और प्रेरक है, वह यह कि उच्च प्रशासनिक और सैन्य सेवाओं से सेवानिवृत्त अधिकारी अब अपने गांव की सेवा के लिए आगे आ रहे हैं और निर्विरोध चुने जा रहे हैं। यह न केवल लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है, बल्कि ग्रामीण विकास के प्रति एक नई सोच और उम्मीद की किरण भी जगाता है।
गुंजी की बेटी, आईजी विमला गुज्याल
गुंजी गांव की मूल निवासी विमला गुज्याल उत्तराखंड की पहली महिला जेल अधीक्षक बनीं। उन्होंने अपने करियर में कई अहम जिम्मेदारियां निभाईं और आईजी रैंक तक पहुंचीं। उनके नेतृत्व में जेल सुधार, महिला कैदियों के लिए कौशल विकास और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए गए।
सेवानिवृत्ति के बाद विमला गुज्याल ने गांव की ओर रुख किया और ग्रामीण विकास के लिए अपनी सेवाएं समर्पित करने का निश्चय किया। गुंजी गांव के ग्रामीणों ने सामूहिक सहमति से उन्हें निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना। ग्रामीणों का विश्वास है कि उनका प्रशासनिक अनुभव और मजबूत नेतृत्व गांव को नई दिशा देगा।
कर्नल यशपाल सिंह नेगी : सैन्य अनुशासन से समाजसेवा तक का सफर
वहीं, गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले के बीरोंखाल ब्लॉक के बिरगण गांव के कर्नल यशपाल सिंह नेगी ने भी मिसाल कायम की है। भारतीय सेना में तीन दशकों तक सेवा करने के बाद कर्नल नेगी गांव लौटे और समाजसेवा, खेती-बाड़ी और बागवानी को अपना मिशन बना लिया।
उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर बंजर पड़ी 45 नाली जमीन को उपजाऊ बनाया और पारंपरिक खेती को नया जीवन दिया। इससे न केवल गांव में रोजगार के अवसर बढ़े, बल्कि युवाओं को भी कृषि की ओर प्रेरणा मिली। बिरगण गांव के लोगों ने सामूहिक फैसला कर कर्नल नेगी को निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना। ग्रामीणों का मानना है कि उनका अनुशासन, नेतृत्व और प्रशासनिक अनुभव गांव की तरक्की में अहम भूमिका निभाएगा।
निर्विरोध निर्वाचन बना लोकतंत्र की सुंदर तस्वीर
प्रदेश में पंचायत चुनाव के तहत 4 जुलाई तक कुल 66,418 पदों के लिए 32,239 नामांकन भरे जा चुके हैं। यह बताता है कि चुनावी मैदान में प्रतिस्पर्धा बेहद कड़ी है। ऐसे माहौल में गुंजी और बिरगण जैसे गांवों का निर्विरोध चुनाव एक सुखद अपवाद और लोकतंत्र की सुंदर तस्वीर पेश करता है।
गुंजी और बिरगण के ग्रामीणों ने यह दिखा दिया है कि लोकतंत्र का असली सौंदर्य आपसी विश्वास, सामूहिक सोच और सही नेतृत्व में निहित है। यह निर्विरोध निर्वाचन न केवल ग्रामीण चेतना की परिपक्वता का प्रतीक है, बल्कि पंचायत चुनावों के लिए एक आदर्श उदाहरण भी बनकर सामने आया है।
यह घटनाक्रम साबित करता है कि यदि जनता चाहे तो राजनीति के शोरगुल और विभाजनकारी राजनीति से परे जाकर अपने गांवों की कमान ऐसे हाथों में सौंप सकती है, जो सचमुच विकास और सेवा के लिए समर्पित हों।
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