धर्म की आड़ में पनप रहे अपराध: समाज और सरकार की मिलकर लड़ाई जरूरी

धर्म

धर्म के नाम पर बढ़ रहे ठगी और शोषण के खिलाफ सरकार ने शुरू किया सख्त अभियान

धर्म के नाम पर जिस्मों का सौदा करने वाले ढोंगी बाबाओं का सच एक बार फिर उजागर हुआ है। ये ऐसे लोग हैं जो धर्म की आड़ लेकर न केवल समाज की आस्था को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि महिलाओं का शोषण कर उनके जीवन को तहस-नहस कर देते हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के कन्नौज में सामने आए छांगुर बाबा प्रकरण ने समाज में एक बार फिर सिहरन पैदा कर दी है। यह व्यक्ति खुद को साधु-संत बताकर वर्षों तक लोगों को बहकाता रहा, महिलाओं का शोषण करता रहा और कानून की आंखों में धूल झोंकता रहा। इस पूरे प्रकरण ने पैसे की आड़ में धर्मांतरण की घिनौनी साजिश को भी बेनकाब कर दिया है।

यह कोई नया मामला नहीं है। पिछले वर्षों में कई ऐसे ढोंगी बाबाओं के भंडाफोड़ हो चुके हैं, जिन्होंने धर्म और आस्था का गलत उपयोग केवल अपने स्वार्थ और अपराध के लिए किया है। ऐसे लोग न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करते हैं, बल्कि असली साधु-संतों की छवि को भी धूमिल करते हैं।

इसी संदर्भ में उत्तराखंड सरकार द्वारा शुरू किया गया ऑपरेशन कालनेमि एक सकारात्मक और आवश्यक पहल है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि प्रदेश में साधु-संत के वेश में छुपे ठगों, महिलाओं और लड़कियों को बहकाने वालों, और धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। यह अभियान न केवल अपराधियों के लिए चेतावनी है, बल्कि पूरे समाज को भी संदेश देता है कि अब मूकदर्शक बने रहना उचित नहीं

उत्तराखंड में पिछले कुछ समय में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ भोली-भाली महिलाओं और युवतियों को बहलाने-फुसलाने और भगाने की कोशिश की गई। इन घटनाओं के पीछे एक सुनियोजित मानसिकता का पता चलता है। कई मामलों में यह भी देखा गया कि इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल लोग एक ही विशेष समूह से जुड़े हुए हैं। साथ ही, धर्मांतरण को इस पूरे मामले की प्रमुख वजह भी माना जा रहा है। यह एक चिंताजनक सामाजिक समस्या है, लेकिन इसका हल किसी पूरे समुदाय को दोषी ठहराने में नहीं, बल्कि अपराधियों की पहचान कर उन्हें कड़ी सजा दिलाने में है।

समाज को भी अब सजग और जागरूक होना होगा। आस्था, भक्ति और करुणा हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी संपत्ति हैं, लेकिन जब इनका दुरुपयोग किया जाता है, तो यह ताकत कमजोर पड़ जाती है। अक्सर लोग बिना सोच-विचार के बाबाओं और धर्मगुरुओं के पीछे चल पड़ते हैं, यह मानकर कि वे सही मार्गदर्शन देंगे। पर वास्तविकता यह है कि कई बार वे लोग अपने स्वार्थ में लिप्त होते हैं और समाज को छलते हैं।

उत्तराखंड सरकार का यह भी कहना बिल्कुल सही है कि पुलिस और प्रशासन अकेले इस चुनौती का सामना नहीं कर सकते। जब तक समाज खुद जागरूक नहीं होगा, और जब तक लोग ऐसे अपराधियों की पहचान कर उनका बहिष्कार नहीं करेंगे, तब तक ये समस्याएं खत्म नहीं होंगी। लोगों को चाहिए कि वे सतर्क रहें और समाज में फैली ऐसी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाएं।

यह भी अति आवश्यक है कि इस अभियान को किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से दूर रखा जाए। किसी भी अपराधी को उसके धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर नहीं, बल्कि उसके कृत्यों के आधार पर दंडित किया जाना चाहिए। निष्पक्ष कानून व्यवस्था ही न्याय का आधार हो सकती है, और तभी समाज में विश्वास कायम रहेगा।

छांगुर बाबा जैसे लोग और उत्तराखंड में महिलाओं को बहकाने वाले गिरोह हमारी सामाजिक और कानूनी व्यवस्था की गंभीर परीक्षा हैं। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम धर्म की आड़ में पनप रहे इस अपराधी तंत्र को तोड़ें और उन्हीं लोगों का समर्थन करें जो सच्चे मन से समाज की सेवा कर रहे हैं।

आस्था को अंधभक्ति में बदलने से रोकना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। यह लड़ाई केवल सरकार की नहीं है, बल्कि हम सबकी है। जब तक समाज की हर इकाई इस विषय पर सजग नहीं होगी, तब तक ऐसे ढोंगी बाबाओं और अपराधियों के खिलाफ सफलता मिलना मुश्किल होगा। जागरूकता, सतर्कता और एकजुटता ही इस लड़ाई की सबसे बड़ी ताकत हैं

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