हरिद्वार में 10 बीघा जमीन पर अवैध दरगाह कैसे खड़ी हुई? सिस्टम पर उठे सवाल

जमीन

उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमी और हरिद्वार में लैंड जिहाद का नया मामला: सरकारी जमीन पर दरगाहमजार के अवैध निर्माण से मचा हड़कंप

उत्तराखंड में फर्जी साधुओं और संदिग्ध धार्मिक गतिविधियों पर सरकार ने जबसे ऑपरेशन कालनेमी शुरू किया है, तबसे लगातार चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं। सलीम, शाहबाज और शाह आलम जैसे लोग साधु-संतों की आड़ लेकर पकड़े जा रहे हैं, तो लगता है जैसे सनातन की बढ़ती लोकप्रियता में हर कोई अपना हिस्सा बटोरना चाहता है। मगर इसी बीच उत्तर प्रदेश में छांगुर जैसे ढोंगी पकड़े जाते हैं और उनके काले कारनामे सामने आते हैं, तो समाज के पैरों तले जमीन खिसक जाती है।

इन सबके बीच एक और हैरान करने वाली खबर हरिद्वार से सामने आई है। यहां टिहरी बांध परियोजना से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए आरक्षित 10 बीघा सरकारी जमीन पर अचानक एक पक्की दरगाह और मजार उभर आई है। खबर है कि हरिद्वार के सुमन नगर इलाके में यह अवैध निर्माण किया गया है। सवाल उठता है कि आखिर यह निर्माण रातों-रात तो नहीं खड़ा हो गया होगा। इसे बनने में समय जरूर लगा होगा, तो फिर सरकारी मशीनरी इस दौरान कहां सोई रही? प्रशासन को इसकी भनक तक क्यों नहीं लगी? क्या बिना सरकारी तंत्र की मिलीभगत के इतनी बड़ी जमीन पर अवैध कब्जा संभव है?

इसी सवाल ने प्रदेश की धामी सरकार को भी कटघरे में ला खड़ा किया है, जो पहले ही लैंड जिहाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की बात करती रही है। सरकार कहती रही है कि उत्तराखंड में किसी भी कीमत पर लैंड जिहाद बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और अवैध मजारों, दरगाहों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन अब सवाल यह है कि सख्त कानून और घोषणाओं के बावजूद असामाजिक तत्व क्यों बेखौफ होकर सरकारी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं? आखिर उन्हें ऐसा करने का साहस कौन और कैसे दे रहा है?

हिंदू संगठनों में गुस्सा, प्रशासन पर सवाल

हरिद्वार की इस घटना ने प्रदेश में माहौल को एक बार फिर गर्मा दिया है। हिंदू संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह कोई सामान्य अतिक्रमण नहीं, बल्कि प्रदेश की डेमोग्राफी बदलने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। संगठनों की मांग है कि अवैध निर्माण को तुरंत ढहाया जाए और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए

वैसे धामी सरकार ने पिछले दो वर्षों में बड़ी संख्या में अवैध धार्मिक स्थलों पर कार्रवाई की है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में अब तक 538 मजारें, 237 मदरसे और 42 अन्य धार्मिक संरचनाएं हटाई जा चुकी हैं। इसके अलावा लगभग 6,500 एकड़ जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त कराया गया है।

मगर इसके बावजूद जनता के मन में कई सवाल हैं। आखिर ऐसी नौबत क्यों आई कि 6,500 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा हो गया? उन सरकारी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई, जिनके कार्यकाल में यह सब हुआ? क्या उन्होंने जानबूझकर आंखें मूंद ली थीं या कोई कीमत ली थी? और अगर कीमत ली, तो फिर ऊपर बैठे अधिकारी या नेता चुप क्यों रहे? लोग पूछ रहे हैं कि आखिर काफिला लुटा क्यों?

इंटेलिजेंस तंत्र पर भी सवाल

इस पूरी घटना ने एक और बड़ी कमजोरी को उजागर किया है — प्रदेश की इंटेलिजेंस व्यवस्था। ऑपरेशन कालनेमी ने यह तो साबित कर दिया कि खुफिया एजेंसियों में क्षमता और कुशलता है, मगर उन पर राजनीतिक रिपोर्टिंग का इतना दबाव रहता है कि उन्हें असामाजिक गतिविधियों की गहराई से जांच-पड़ताल का मौका नहीं मिल पाता। शाह आलम जैसे संदिग्ध व्यक्ति का कांवड़िए के वेश में पकड़ा जाना यही दिखाता है कि ऑपरेशन कालनेमी न होता, तो शायद वह भी बच निकलता।

पहाड़ की बेटियां, बदलते नाम और देवभूमि पर साजिश

इस बीच एक और चिंता का विषय है – पहाड़ की बेटियों का लगातार गायब होना और नाम बदलकर घुसपैठ करने की घटनाएं। ये सभी घटनाएं एक बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा कर रही हैं, जिसके तहत देवभूमि के सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप को बदलने की कोशिश की जा रही है।

लोग पूछ रहे हैं कि आखिर कौन लोग हैं जो सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण कर रहे हैं? अगर 538 अवैध मजारें तोड़ी गईं, तो उन्हें बनाने वालों की कमर पर प्रहार क्यों नहीं हुआ? उन्हें संरक्षण कौन दे रहा था? और क्यों शासन-प्रशासन उनके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने से हिचक रहा है?

इन तमाम सवालों के बीच एक बात तो साफ है — प्रदेश का सिस्टम बीमार हो चुका है। सरकार को अभियान चलाने पड़ रहे हैं ताकि अवैध निर्माण और जमीन कब्जे रोके जा सकें मगर सवाल यह भी है कि आखिर सिस्टम की जवाबदेही कब तय होगी? और कब तक देवभूमि को इस तरह बदलने की साजिशें चलती रहेंगी?

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