एसडीआरएफ ने खीर गंगा उद्गम का किया ड्रोन सर्वे, 400 तस्वीरें वाडिया संस्थान को भेजीं
उत्तरकाशी। आपदा के कारणों की तह तक जाने के लिए शासन ने बहुआयामी जांच की कवायद शुरू कर दी है। इसी कड़ी में एसडीआरएफ की टीम ने खीर गंगा उद्गम स्थल तक पहुंचकर ड्रोन सर्वे किया और लगभग 400 उच्च गुणवत्ता वाले फोटोग्राफ खींचकर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून को भेज दिए हैं। अब इन तस्वीरों के आधार पर वैज्ञानिक आपदा के कारणों का गहन विश्लेषण करेंगे।
ज्ञात रहे कि हाल ही में धराली क्षेत्र में आई विनाशकारी आपदा का मुख्य कारण खीर गंगा से आए भारी मलबे को माना जा रहा है। शासन ने इस आपदा के वास्तविक कारणों की जांच के लिए वाडिया संस्थान समेत कई अन्य वैज्ञानिक संस्थानों के विशेषज्ञों की एक संयुक्त टीम का गठन किया था। यह टीम 14 अगस्त से ही मौके पर पहुंच गई थी और लगातार क्षेत्रीय पड़ताल में जुटी हुई है।
शुरुआत में टीम ने हवाई सर्वे के माध्यम से खीर गंगा के कैचमेंट एरिया का अवलोकन किया था। इस सर्वे का उद्देश्य आपदा की जड़ तक पहुंचना और वहां के भौगोलिक एवं भूवैज्ञानिक स्वरूप को समझना था। लेकिन मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों और दुर्गम भौगोलिक स्थिति के कारण संपूर्ण क्षेत्र का सर्वेक्षण संभव नहीं हो पाया। इस वजह से एसडीआरएफ की एक विशेष टीम को पैदल ट्रेकिंग कर उद्गम स्थल तक पहुंचना पड़ा।
टीम ने कठिन ट्रेकिंग करते हुए खीर गंगा के उद्गम तक का सफर तय किया और वहां से ड्रोन की मदद से लगभग चार सौ फोटोग्राफ कैप्चर किए। ये तस्वीरें विभिन्न कोणों से ली गई हैं, जिनमें जलधारा, चट्टानों का स्वरूप, कटाव, मलबे का फैलाव और आसपास के भूभाग की स्थिति स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। इन्हें अब वाडिया संस्थान भेज दिया गया है, जहां विशेषज्ञ इन पर सूक्ष्म स्तर पर अध्ययन कर आपदा के कारणों को चिन्हित करने की कोशिश करेंगे।
एसडीआरएफ की टीम ने सिर्फ फोटोग्राफी तक ही काम सीमित नहीं रखा, बल्कि वहां मौजूद स्थानीय ग्रामीणों और चरवाहों से भी बातचीत कर महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। स्थानीय लोगों ने आपदा से पहले और बाद की स्थिति को लेकर जो तथ्य साझा किए हैं, वे वैज्ञानिक अध्ययन के लिए अहम आधार बन सकते हैं। इंसीडेंट कमांडर एवं आईजी एसडीआरएफ अरुण मोहन जोशी ने इस बात की पुष्टि की है कि फोटोग्राफ को आधिकारिक रूप से वाडिया संस्थान भेजा जा चुका है।
दूसरी ओर, शासन स्तर पर गठित विशेषज्ञों की टीम अपनी जांच को अंतिम रूप देने में जुटी हुई है। माना जा रहा है कि इस सप्ताह आपदा प्रबंधन विभाग को इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी जाएगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार अधिकृत रूप से आपदा के वास्तविक कारणों की घोषणा करेगी।
सूत्रों का कहना है कि प्रथम दृष्टया आपदा का मुख्य कारण बादल फटना प्रतीत हो रहा है। हालांकि वैज्ञानिक टीमें अभी भी इस पर काम कर रही हैं और अन्य संभावित कारणों जैसे कि ग्लेशियर से पानी का अचानक बहाव, भूस्खलन और चट्टानों के टूटने की स्थिति को भी जांच के दायरे में रखा गया है।
सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विनोद कुमार सुमन ने बताया कि विशेषज्ञों की टीम लगातार क्षेत्रीय सर्वेक्षण, नमूनों के परीक्षण और उपग्रह से मिली जानकारी का विश्लेषण कर रही है। फिलहाल रिपोर्ट आने तक किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। रिपोर्ट मिलने के बाद ही अधिकृत और ठोस जानकारी जनता के सामने रखी जाएगी।
इस प्रकार, आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए प्रशासन, वैज्ञानिक संस्थान और आपदा प्रबंधन विभाग सभी मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि वैज्ञानिकों द्वारा भेजे गए निष्कर्ष भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचाव और रोकथाम के उपाय तय करने में भी सहायक होंगे।
Leave a Reply