ईको सेंसिटिव जोन नियमों की अनदेखी, नदियों के किनारे हो रहा निर्माण; हर साल आपदाओं की मार झेल रहा उत्तरकाशी
उत्तरकाशी। भूकंप और आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील उत्तरकाशी जनपद में ईको सेंसटिव जोन की बंदिशों के बावजूद नदियों के किनारे लगातार निर्माण कार्य जारी हैं। नियमों के अनुसार नदियों के 200 मीटर क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होना चाहिए, लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। होटलों, रिजॉर्ट्स और आश्रमों का निर्माण खुलेआम जारी है, जिससे हर साल मानसून सीजन में यहां आपदाओं का खतरा और अधिक गहरा जाता है।
2013 में घोषित हुआ था ईको सेंसटिव जोन
वर्ष 2013 में गंगोत्री धाम से लेकर उत्तरकाशी जिला मुख्यालय तक के क्षेत्र को केंद्र सरकार ने ईको सेंसटिव जोन घोषित किया था। उस समय स्थानीय लोगों ने इसका विरोध भी किया, लेकिन इसके बावजूद नियम लागू कर दिए गए। नियम स्पष्ट करते हैं कि भागीरथी नदी के दोनों किनारों से 200 मीटर की परिधि में कोई भी नया निर्माण नहीं किया जा सकता।
नियमों के बावजूद जारी निर्माण
नियम लागू होने के बाद भी बड़े-बड़े आश्रम, होटल और रिजॉर्ट नदियों के किनारे खड़े हो गए। कई स्थानों पर तो निर्माण नदी से मात्र 50 मीटर दूरी पर ही किए गए हैं। नतीजतन, हर वर्ष मानसून के दौरान जब नदियों का जलस्तर बढ़ता है तो ये निर्माण आपदा की चपेट में आ जाते हैं। इसके बावजूद प्रशासन और संबंधित विभागों की ओर से ठोस कार्रवाई नहीं हो रही।
आपदाओं का बढ़ता खतरा
धराली और हर्षिल क्षेत्र में आई आपदाओं ने इस खतरे को पहले भी उजागर किया है। यहां आए विनाशकारी घटनाक्रम के बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भी जिलाधिकारी और सिंचाई विभाग से ईको सेंसटिव जोन के नियमों के पालन को लेकर जवाब तलब किया था। बावजूद इसके, हालात जस के तस बने हुए हैं। हर्षिल से लेकर जिला मुख्यालय तक कई स्थानों पर नए निर्माण हो रहे हैं, जो सीधे तौर पर नियमों का उल्लंघन है।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
स्थानीय लोग और पर्यावरणविद लगातार चेतावनी देते आ रहे हैं कि नदियों के किनारे निर्माण न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि भविष्य में बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि का कारण भी बन सकते हैं। बावजूद इसके, नियमों के उल्लंघन पर कोई ठोस कदम न उठाया जाना प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है।
आपदा-प्रवण क्षेत्र में लापरवाही जारी
उत्तरकाशी जनपद पहले से ही भूकंप संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। यहां लगातार हो रहे अनियंत्रित और अवैध निर्माण भविष्य में किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में बड़े खतरे को जन्म दे सकते हैं। जानकारों का कहना है कि अगर समय रहते सख्ती नहीं बरती गई तो स्थिति और भयावह हो सकती है।
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