एक ऐसा मंदिर जहाँ भक्तों को अंदर दर्शन करने की नहीं है इजाजत

चमोली। उत्तराखंड को यू ही देवो की भूमि देवभूमि नहीं कहा जाता है।राज्य में कई मंदिर और धार्मिक स्थल है, जो अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। ऐसा ही एक मंदिर है लाटू देवता का मंदिर जो की चमोली जिले में स्थित है। यहां पर भक्तों को मंदिर के अंदर दर्शन करने की इजाजत नहीं है।

मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में नागराज अद्भुत मणि के साथ रहते हैं। इसे आम लोग नहीं देख सकते हैं। यही नहीं, पुजारी भी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा करते हैं ताकि वह महान रूप देखकर डर न जाएं। स्थानीय लोगों का मानना है कि मणि की तेज रोशनी से इंसान अंधा भी हो सकता है। यही नहीं, पुजारी के मुंह की गंध तक देवता तक नहीं पहुंचनी चाहिए और नागराज की विषैली गंध पुजारी की नाक तक पहुंचनी चाहिए।

मंदिर के दरवाजे साल में एक बार वैशाख महीने की पूर्णिमा के मौके पर खुलते हैं। कपाट खुलने के वक्त भी मंदिर का पुजारी अपनी आंख और मुंह पर पट्टी बांधता है।

यह मंदिर समुद्र तल से 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित विशाल देवदार वृक्ष के नीचे एक छोटा मंदिर है। लाटू देवता को उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी का धर्म भाई माना जाता है। प्रत्येक 12 सालों में उत्तराखंड की सबसे लंबी श्री नंदा देवी की राजजात यात्रा का बारहवां पड़ाव वाण गांव है। लाटू देवता वाण गांव से होमकुंड तक नंदा देवी का अभिनंदन करते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर के अंदर साक्षात रूप में नागराज मणि के साथ निवास करते हैं।

इसलिए बांधी जाती है आंख पर पट्टी

लाटू देवता मंदिर में प्रवेश करते समय पुजारी की आंख पर पट्टी बांधता है। ग्रामीणों के अनुसार मंदिर में नाग मणि विराजमान है। मणि के दर्शन करने पर आंखों की रोशनी जा सकती है, इसलिए पुजारी आंख पर पट्टी बांधकर ही मंदिर में प्रवेश करता है और मंदिर से 75 फीट की दूरी पर श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। जिस दिन लाटू देवता मंदिर के कपाट खुलते हैं उस दिन यहां पर विष्णु सहस्रनाम व भगवती चंडिका का पाठ भी आयोजित किया जाता है। लाटू देवता को स्थानीय लोग आराध्य देवता मानते हैं। वाण में स्थित लाटू देवता के मंदिर का कपाट सालभर में एक ही बार खुलता हैं। इस दिन यहां विशाल मेला आयोजित होता है। वाण क्षेत्र में लाटू देवता के प्रति लोगों में बड़ी श्रद्धा है। लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू देवता के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

श्रद्धालु साक्षात नाग को देखकर डरे न इसलिए मुंह और आंख पर पट्टी बांधी जाती है। यह भी कहा जाता है कि पुजारी के मुंह की गंध देवता तक न पहुंचे इसलिए पुजारी के मुंह पर पूजा अर्चना के दौरान भी पट्टी बंधी रहती है। लाटू देवता मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं किए जाते हैं। सिर्फ पुजारी ही मंदिर के भीतर पूजा-अर्चना के लिए जाता है।

कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु देवता के दर्शन दूर से ही करते हैं। इस मंदिर में विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका पाठ का आयोजन होता है। वहीं, मार्गशीर्ष अमावस्या को कपाट बंद होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी के धर्म भाई हैं। ये मंदिर हर 12 साल में होने वाली श्री नंदा देवी राज जात की यात्रा का 12वां पड़ाव भी है।

लाटू देवता वांण से लेकर हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा देवी की अगवानी करते हैं। वैशाख पूर्णिमा को हर साल यहां स्थानीय मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शामिल होते हैं।

यह भी है मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार लाटू कनौज के गौड़ ब्राह्मण थे, जो मां नंदा के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत की यात्रा पर चले थे। वे जब वाण गांव पहुंचे, वहां उन्हें प्यास लग गई। उन्होंने वहां एक घर में महिला से पानी मांगा। महिला रजुसला थी, इसलिए महिला ने ब्राह्मण से कहा कि उस कमरे में तीन घड़े हैं, उनमें से एक घड़े में पानी है पी लीजिए। ब्राह्मण ने पानी की जगह मदिरा पी लिया। ब्राह्मण नशे में जमीन पर गिर गए और उनकी जीभ कट गई। खून जमीन पर गिरते ही मां नंदा ने दर्शन दिए और कहा तुम मेरे धर्म भाई हो। कहा कि मेरी यात्रा का यहां से आगे का होमकुंड तक अगुआ रहेगा। भक्त मेरी पूजा से पहले तुम्हारी पूजा करेंगे।

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