अनूठी है मां अनूसूया मंदिर की दास्तां ! दत्तात्रेय जयंती पर लगेगा मेला…

देहरादून: उत्तराखंड न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिहाज़ से खास है बल्कि धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से भी ये पहाड़ी प्रदेश काफी समृद्ध है.
यहां के पारम्परिक लोकगीत, खानपान, रीतिरिवाज़, गाढ़-गधेरे, फल-फूल, मेले और कौथिग इसे खास बनाते हैं.
बद्री केदार गंगोत्री यमुनोत्री सरीखे चार धाम हो या प्रदेशभर में फैले शक्तिपीठ और सिद्धपीठ देश-दुनिया के लोगों की इनमें बेहद आस्था है.
इन धार्मिक स्थलों में महज श्रद्धालुओं की मनोकामना ही पूरी नहीं होती है बल्कि उन्हें आध्यात्मिक शांति भी मिलती है.
ये ही वजह है कि उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है.
एक ऐसा ही मंदिर है चमोली का अनुसूया माता मंदिर ! जहां दत्तात्रेय जयंती के मौके पर निसंतान दम्पत्ति दूर-दूर से संतान प्राप्ति की मुराद लेकर आते हैं.
माता अनुसूया की पौराणिक कथा काफी दिलचस्प है. दरअसल सनातन परम्परा में पतिव्रत धर्म का खास महत्व है…
ये सतयुग की बात है जब माता अनुसूया सर्वोच्च पतिव्रता के रुप में पहचानी जाती थी.
लिहाज़ा उनके पतिव्रत धर्म को आजमाने त्रिदेवों की तिगड़ी खुद धरती पर उतर गयी. और ऋषि भेस में उनके पति महर्षि अत्री की अनुपस्थिति में उनके दर पर पहुंचे.
त्रिदेवों ने अनुसूया से भोजन कराने को कहा. लेकिन ज्यों ही मां अनूसूया उन्हें भोजन कराने लगी. तभी त्रिदेवों ने एक अजीब सी शर्त सामने रख दी.
त्रिदेवों ने शर्त रखी की जब वे उन्हें नग्नावस्था में भोजन कराएंगी तब ही वे भोजन ग्रहण करेंगी.
धर्मपरायण और प्रतिव्रता नारी के सामने ये अजब सी दुविधा थी. लेकिन माता अनुसूया ने अपने पतिव्रत तपस्या के प्रताप से श्रृष्टि के रचियता,पालक, और विनाशक को बालक बना दिया और बड़े दुलार से स्तनपान कराया.
इस तरह माता अनुसूया ने त्रिदेवों की शर्त और पतिव्रत धर्म दोनों का पालन किया.
लेकिन त्रिदेव फिर सामान्य रूप में वापस न आ सके. उधर लक्ष्मी पार्वती और सरस्वती अपने पतियों की तलाश में इधर उधर भटकने लगी.
देवर्षि नारद की सूचना पर त्रिदेवियां माता अनूसूया के दर पर पहुंची और त्रिदेवों को सामान्य रूप में लाने की प्रार्थना की. जिसके बाद माता अनूसूया ने जल छिड़कर त्रिदेवों को सामान्य रुप प्रदान किया.
त्रिदेवों ने अपनी भूल के लिए मां अनुसूया से क्षमा मांगी. उसके बाद ब्रह्मा ने चंद्रमा, शिव ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में माता अनसूया की गोद से जन्म लिया.
तभी से देवी अनसूया ‘पुत्रदा’ यानी माता के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है.
तभी से इस स्थान पर सती मां अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है, प्रत्येक वर्ष दत्तात्रेय जयंती पर मार्गशीर्ष पूर्णिमा को यहां विशाल मेला भी लगता है.
इस दिन पूरी रात खड़े रहकर निसंतान दंपति माता अनुसूया की पूजा अर्चना कर संतान प्राप्ति की कामना करते हैं.
17 दिसम्बर को माता अनुसूया मंदिर में मेले का शुभारंभ हो रहा है. आप भी इस दिन मनोरम आध्यात्मिकता का अनुभव करने के लिए यहां जरूर जाईए.
माता के मंदिर की लोकेशन की बात करें तो ऋषिकेश से 250 किलोमीटर तक का सफर तय करके चमोली और फिर तक यहां पहुंच सकते हैं.
फिर यहां से 10 किलोमीटर गोपेश्वर और फिर 13 किलोमीटर दूर मंडल और फिर उसके बाद 5 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई ट्रैक कर सती माता अनसूया के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.

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