आज मकर संक्रांति का पावन पर्व है सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश कर चुके हैं, इस खगोलीय घटना को सूर्य का उत्तरायण कहा जाता है. हिंदु धर्म में आज से शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है।
पोंगल,बिहु, खिचड़ी और भी तमाम तरह के नामों से देश के अलग अलग प्रांतों में ये त्यौहार अलग अलग प्रकार से मनाया जाता है।
उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल में भी ये त्यौहार खासा रंगीन तरीके से मनाया जाता है। कुमाऊं में घुघुतिया त्यार नाम से जाना जाता है। इस दिन नदियों में स्नान करने के साथ दान व पुण्य का महत्व तो है ही, कुमाऊं में मीठे पानी में से गूंथे आटे से विशेष पकवान बनाने का भी चलन है।
बागेश्वर से चम्पावत और पिथौरागढ़ जिले की सीमा पर स्थित घाट से होकर बहने वाली सरयू नदी के पार (पिथौरागढ़ व बागेश्वर निवासी) वाले मासांत को यह पर्व मनाते हैं।
जबकि बाकी कुमाऊं में इसे संक्रांति के दिन मनाया जाता है। गांवों से निकलकर हल्द्वानी व दूसरे शहरों में बस गए लोग अपनी माटी से भले दूर हो गए हों, लेकिन घुघुतिया त्यार मनाने की परंपरा आज भी वही है। घुघुतिया के दूसरे दिन बच्चे काले कौआ, घुघुती माला खाले की आवाज लगाकर कौए को बुलाते हैं।
मकर संक्रांति के साथ खरमास खत्म हो जाएगा। गढ़वाल में भी मकर संक्रांति के त्यौहार को खासा उत्साह के साथ मनाया जाता है. उत्तराखंड के निवासी “गेंदी की कौथिक” जैसी त्यौहारों को मना कर खुद को नई ऊर्जा और ताजगी से भरते हैं.
इस दिन पौड़ी के थलनदी में लगने का वाला गेंद का मेला काफी प्रसिद्ध है, चौदह जनवरी को पौ फटने (सुबह) होने के साथ ही पौड़ी गढ़वाल में एक पहाड़ की तलहटी में स्थित त्योडो गाड में लोगों के हुजुम को देखा जा सकता है।
इस स्थान पर पिछले तीन दशक से मकर संक्रांति त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता रहा है। ये त्यौहार दो दिनों तक आयोजित होता है। इस त्यौहार के मौके पर यहां एक मेला लगता है, जिसमें आसपास के दस किलोमीटर के दायरे के 25 गांवों से लगभग 2000 ग्रामीण एकजुट होते हैं।
यह मेला गांव-समाज की उन बहू-बेटियों, जो वर्षों से अपने परिवार से मिल नहीं पाई है, को परिवारजनों (मायके वालों) से मिलने का अवसर देता है।