रंगो का त्यौहार होली का पावन पर्व, जाने विधि और पौराणिक कथा

देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है। ब्रज क्षेत्र की होली पूरे भारत में मशहूर है। खास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। वही इस बार 10 मार्च को होलाष्टक लगेगा और 18 मार्च को होली मनाई जाएगी। इस बार एक अच्छी बात ये भी है कि होली शुक्रवार को पड़ रही है। यानी होली के अगले दो दिन वीकेंड रहेगा और आप इस छुट्टी में आराम से त्योहार मना सकते हैं। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से होली का त्योहार मनाया जाता है। 10 मार्च से होलाष्टक लगेगा। इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है।

*होलिका दहन का शुभ मुहूर्त*

*होलिका दहन तिथि- 17 मार्च (गुरुवार)*

होलिका दहन शुभ मुहूर्त- रात 9 बजकर 20 मिनट से देर रात 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा.

*होलिका दहन की विधि*

होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले से ढक दिया जाता है. इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन डाले जातें है. ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और सारी बुरी बलाएं इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं. होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं।

होली से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। पुराणों में हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास है। इसके अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ।

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