शहीद श्रीदेव सुमन की 78 वीं पुण्यतिथि पर जिला कारागार में मनाया गया ‘सुमन दिवस’

उत्तराखंड में राजशाही से लोहा लेने वाले  शहीद श्रीदेव सुमन की 78 वीं पुण्यतिथि पर जिला कारागार में ‘सुमन दिवस’ मनाया गया.

 

‘सुमन दिवस’ पर टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय, DM डॉ सौरभ गहरवार ने श्रीदेव सुमन की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की. इस मौके पर पौधारोपण किया गया और छात्रों ने प्रभात फेरी भी निकाली.

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत पक्ष विपक्ष के कई नेताओं ने भी श्रीदेव सुमन को श्रद्धाजंलि दी.

 

वहीं उत्तरकाशी में भी उनके बलिदान दिवस पर याद किया गया, जिले के स्कूली छात्र-छात्राओं ने प्रातः प्रभात फेरी निकाली.

 

हनुमान चौक स्थित श्रीदेवसुमन की मूर्ति पर जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला, नगर पालिका अध्यक्ष रमेश सेमवाल,वरिष्ठ समाज सेवी नागेंद्र थपलियाल,विष्णुपाल रावत, शैलेन्द्र नौटियाल आदि ने माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

 

उसके बाद जिला कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में जिलाधिकारी,अपर जिलाधिकारी सभी कर्मचारियों ने श्री देवसुमन जी को  पुष्पांजलि अर्पित की.

 

श्रीदेवसुमन सुमन के जीवन और संघर्ष पर वक्ताओं द्वारा अपने विचार व्यक्त किए, वरिष्ठ समाजसेवी नागेंद्र थपलियाल,पर्यावरण प्रेमी प्रताप पोखरियाल,शैलेन्द्र नौटियाल, विष्णुपाल रावत ने अपने विचार रखें.

 

उन्होंने बताया कि श्रीदेवसुमन जी ने ऐतिहासिक 84 दिन तक भूख हड़ताल की. उनका यह बलिदान शाहदत दिवस के रुप में मनाया जा रहा है.

 

जिलाधिकारी ने अपने सम्बोधन में कहा कि श्रीदेव सुमन जी का बलिदान जीवन में विशेष महत्व रखता है उन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया था.

 

उनके बलिदान से आने वाली पीढ़ियों ने सीखा तथा उनके मूल्यों एवं प्रेरणा से राजशाही एवं ब्रिटिश साम्राज्य का अंत हुआ। मजबूत लोकतंत्र के लिए देश ने एक जुट होकर कार्य किया.

 

फलस्वरूप श्रीदेवसुमन जी ने जेल के अंदर गरीब,वंचित के उत्थान लिए जो सपने देखे थे,उनको पूरा करने की सार्थक पहल हुई.

 

उपस्थित कार्मिकों को सम्बोधित करते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि उनके जीवन एवं मूल्यों से प्रेरणा लेकर गरीब और वंचितों की समस्याओं के समाधान का हिस्सा बनाया जाय. ताकि उनके द्वारा देखे गए सपने को साकार किया जा सके.

 

श्री देव सुमन का क्रांतिकारी सफर

 

श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था. ब्रिटिश राज और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया.

 

209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन का 25 जुलाई 1944 को निधन हो गया.

 

श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था. उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था. उन्होंने मार्च 1936 गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की थी.

 

जबकि, जून 1937 में ‘सुमन सौरभ’ कविता संग्रह प्रकाशित किया. वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए. मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया.

 

वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया. उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया जबकि उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई.

 

नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे. उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया.

 

वहीं, दिसंबर 1943 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में तीसरी बार गिरफ्तार किया गया. फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई. 3 मई 1944 से टिहरी जेल में अनशन शुरू किया.

 

जहां 84 दिन के ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इस दौरान उनकी रोटियों में कांच कूटकर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया.

 

श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे. झूठे गवाहों के आधार पर उन पर मुकदमा दायर किया गया. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे.

 

जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन को हर साल श्रद्धासुमन अर्पित कर याद किया जाता है.

 

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