हमारे पुरखों ने अलग उत्तराखंड इसलिए अपने प्राणों की आहूति दी कि पहाड़ की नई पीढ़ी की जिंदगी बेहतर हो सके, रोजगार के समान अवसर मिले, बेहतर, स्वास्थ्य, शिक्षा मिले.
लेकिन उनकी शहादत के बाद सत्ता पर काबिज हुए नेता आज तलक अपने फायदे के लिए प्रदेश का दोहन कर रहे हैं, अपने सगे सम्बन्धियों को नियमों के पार जाकर नौकरियां बांट रहे हैं, इस पर छाती ठोककर कबूल भी करते नजर आते हैं.
ऐसे में राज्य के लिए जान देने वाली शहीदों की आत्मा भी रोती होगी. आज मसूरी गोलीकांड की बरसी है, उत्तराखंड के उन शहीदों को याद करने का दिन.
1 सितम्बर साल 1994 को खटीमा में गोलीकांड हुआ था , जिसमें 8 आंदोलनकारी शहीद हुए थे, इस निर्ममता के बाद पूरा उत्तराखंड उबल पड़ा.
खटीमा गोलीकांड के विरोध में 2 सितम्बर यानि आज ही के दिन मसूरी में आंदोलनकारी मसूरी गढ़वाल टेरेस से जुलूस निकाल कर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के ऑफिस झूलाघर जा रहे थे.
गनहिल पहाड़ी पर किसी ने पथराव कर दिया, जिससे बचने के लिए राज्य आन्दोलनकारी समिति के कार्यालय की तरफ आने लगे.
कहा जाता है कि पथराव करने वाले समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दमन के लिए ,कई अनैतिक प्रयास किये , लेकिन वे अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पाए.
पथराव की आड़ में उत्तर प्रदेश की PAC ने , निरपराध और निहथे आंदोलनकारियों पर गोली चला दी.
इस गोलाबारी में 06 आंदोलनकारी शहीद हो गए, इसमें 2 महिलाये भी शामिल थी. ये गोलीकांड इतना भयानक था कि एक महिला आंदोलनकारी बेलमती चौहान के सर से बन्दूक सटा कर गोली मारी गयी.
उत्तर प्रदेश पुलिस के DSP उमाकांत त्रिपाठी इस आंदोलनकारियों पर गोली चलाने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्हें भी गोली मार दी गयी.
मसूरी के शहीद
- बेलमती चौहान – ग्राम खलोन ,पट्टी -घाट ,अकोडया टिहरी गढ़वाल।
- हंसा धनई – ग्राम -बंगधार , पट्टी धारामण्डल ,टिहरी गढ़वाल
- बलबीर सिंह नेगी – मसूरी , लक्ष्मी मिष्ठान भंडार।
- धनपत सिंह – गंगवाडा ,पोस्ट गंडारस्यू ,टिहरी उत्तराखंड
- मदन मोहन ममगई – नागजली ,पट्टी -कुलड़ी ,मसूरी
- राय सिंह बंगारी – ग्राम -तौदेरा ,पट्टी पूर्वी भरदार टिहरी गढ़वाल।