हिमालय दिवस पर परमार्थ निकेतन में हिमालय एक जलवायु नियंत्रक विषय पर आज से तीन दिवसीय सम्मेलन शुरू होने जा रहा है। सम्मेलन में राजनीतिक नेतृत्व, सामाजिक संगठन व विभिन्न वर्गों से बुद्धिजीवी सहभाग कर रहे हैं। सम्मेलन का शुभारंभ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया। उन्होंने कहा कि विकास और आर्थिक दोनों ही जरूरी है। पर्यावरण संरक्षण के दायित्व को भी हमें महसूस करना है। देश और समाज के लिए आर्थिक और पर्यावरण दोनों जरूरी हैं। इन दोनों में संतुलन कायम करके ही हम हिमालय को बचा सकते हैं।
हवा, मिट्टी, जंगल और पानी का उत्तराखंड में भंडार है। हिमालय का संरक्षण और राष्ट्र के लिए प्राकृतिक स्रोत को बचाना भी हमारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। हमें प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन रोकना है।
इकोलाजी और इकोनामी दोनों को संतुलित रूप से लेना है। मौसम चक्र में लगातार बदलाव हो रहा है, वनस्पतियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इकोसिस्टम में तेजी से बदलाव हो रहा है, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। हिमालय क्षेत्र में आने वाली आपदाओं का प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि 75 हजार पौधों वाले रुद्राक्ष वन की स्थापना के साथ-साथ नीलकंठ और आसपास क्षेत्र में 50 हाथी तालाब बनाने का काम शुरू हो गया है। हिमालय को बचाने के लिए सामूहिक पहल जरूरी है। उसको लेकर धरातल पर काम होना जरूरी है।
वन एवं पर्यावरण मंत्री उत्तराखंड सुबोध उनियाल ने कहा कि गंगा के तट से हिमालय को बचाने की मुहिम शुरू हो रही है, जो जरूर सफल होगी। वन विभाग की नीतियों में भी हम आमूलचूल परिवर्तन करने जा रहे हैं। जंगल के अस्तित्व को बचाते हुए हिमालय के अस्तित्व को बचाने का हम काम करेंगे।
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