चिंताजनक- संक्रामक बीमारी के बाद घोड़ों-खच्चरों की आवाजाही पर रोक
सम्बंधित विभाग खतरे को टालने में जुटा, एक्सपर्ट मौके पर
गुप्तकाशी/रुद्रप्रयाग। चारधाम यात्रा की शुरुआत में ही घोड़ों–खच्चरों की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मामले की गम्भीरता को समझते हुए गौरीकुंड व सोनप्रयाग के बीच लगभग डेढ़ से 2 हजार के बीच घोड़ों-खच्चरों को क्वारन्टीन किया गया है। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान,हिसार से भी चिकित्सक मौके पर पहुंच गए हैं।
यही नहीं, श्वसन की संक्रामक बीमारी होने के बाद केदारनाथ पैदल मार्ग में घोड़ों-खच्चरों की आवाजाही बन्द होने से श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
सरकारी सूत्रों ने 14 घोड़े-खच्चरों की मौत की बात कही है। लेकिन मौत का यह आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है। बढ़ते खतरे को देखते हुए कई पशुपालक अपने घोड़ों-खच्चरों को लेकर वापस लौट गए हैं। स्थिति सामान्य होने पर ही ये पशुपालक वापस लौटेंगे।

केदारनाथ यात्रा मार्ग पर एक चिंताजनक घटना सामने आई है, जहां बीते तीन दिनों में 14 घोड़ों की मौत हो गई है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार इन घोड़ों की मौत किसी संक्रामक बीमारी के कारण हुई है। प्रशासन और पशुपालन विभाग ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच शुरू कर दी है और यात्रा मार्ग पर सतर्कता बढ़ा दी गई है।
केदारनाथ पैदल मार्ग में लगभग 5 हजार से अधिक घोड़ों-खच्चरों को फिटनेस प्रमाणपत्र दिया गया था। घोड़ों- खच्चरों के लिए पर्याप्त गर्म पानी मुहैया कराने की भी बात कही गयी थी।
गौरतलब है कि स्थानीय पशुपालकों के अलावा उत्तर प्रदेश के संचालक भी अपने घोड़ों-खच्चरों को लेकर यात्रा रूट पर पहुंचते हैं।
मैदान के गर्म इलाके से सीधे 11 हजार फीट की चढ़ाई पर झोंक देने से भी घोड़ों-खच्चरों को असामान्य तापमान परिवर्तन की मार भी बीमार कर देती है।
जबकि, झुलसती गर्मी से ठंडे इलाके में आने वाले इन घोड़ों -खच्चरों को पहाड़ी आबोहवा का अभ्यस्त बनाने के बाद ही 16 किमी की खड़ी चढ़ाई में झोंकना चाहिए। लेकिन इस प्रक्रिया का पालन किये बिना ही घोड़ों- खच्चरों को सीधे बेहद सर्द वातावरण की ओर धकेल दिया जाता है।
उत्तराखंड की सीमा से सटे बिजनौर ,सहारनपुर जिलों से लाये है रहे इन घोड़ों- खच्चरों की बार्डर पर ही जांच के बाद प्रवेश दिया जाता है। इसके बावजूद यात्रा की शुरुआत में ही घोड़ों-खच्चरों की मौत ने विभागीय लापरवाही को उजागर कर दिया।
बहरहाल, कई सवालों के बीच पशु पालन विभाग व जिला प्रशासन इस बड़े खतरे को टालने की कोशिश में जुटा है।
बीमारी के लक्षण और आशंका
पशुपालन विभाग के अनुसार इन घोड़ों में यात्रा के दौरान अचानक कमजोरी, भूख न लगना, तेज बुखार और साँस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखाई दिए थे। कुछ घोड़ों की हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें रास्ते में ही दम तोड़ना पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह किसी वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण का मामला हो सकता है, जो एक से दूसरे पशु में तेजी से फैल सकता है।
नमूनों की जांच जारी
मृत घोड़ों के सैंपल लेकर देहरादून और बरेली स्थित प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजे गए हैं। रिपोर्ट आने तक प्रशासन ने एहतियात के तौर पर बीमार घोड़ों को अलग करने और यात्रा मार्ग पर पशुओं की चिकित्सा जांच को अनिवार्य कर दिया है।
प्रशासन की कार्रवाई
रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी ने बताया कि यात्रा में उपयोग होने वाले सभी खच्चरों और घोड़ों की स्वास्थ्य जांच की जा रही है। गौरीकुंड और सोनप्रयाग में विशेष मेडिकल चेकपॉइंट बनाए गए हैं, जहां बिना फिटनेस प्रमाणपत्र के किसी भी पशु को यात्रा पर भेजने की अनुमति नहीं दी जा रही।
पशु मालिकों में चिंता
घोड़े-खच्चर मालिकों में इस घटना के बाद दहशत फैल गई है। स्थानीय पशु चालकों का कहना है कि यदि यह बीमारी फैली तो उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि केदारनाथ यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु इन पशुओं पर निर्भर करते हैं।
पूर्व में भी हुई हैं घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब केदारनाथ यात्रा मार्ग पर पशुओं की अचानक मौत हुई हो। पूर्व में भी अधिक थकान, चढ़ाई के दबाव और बीमारियों के कारण घोड़े-खच्चरों की जान जा चुकी है, लेकिन इस बार संक्रामक बीमारी की आशंका ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
वर्ष 2009 और 2012 में भी संक्रमण से 300 से अधिक घोड़ा-खच्चरों की मौत हो गई थी। वर्ष 2023 में काल में 351 घोड़ा-खच्चरों की मौत हुई थी। हालांकि, मौत का कारण पेट दर्द और गैस होना पाया।
स्वास्थ्य टीमों की तैनाती
पशुपालन विभाग की विशेष टीमें अब पूरे यात्रा मार्ग पर भ्रमण कर रही हैं और बीमार पशुओं की पहचान कर उन्हें इलाज उपलब्ध करा रही हैं। अधिकारियों ने यात्रा मार्ग पर सफाई, उचित भोजन और विश्राम स्थलों की निगरानी बढ़ा दी है।
यात्रियों से अपील
प्रशासन ने यात्रियों से अपील की है कि वे अधिकृत और फिट घोषित किए गए घोड़ों-खच्चरों का ही उपयोग करें तथा किसी भी बीमार या थके हुए पशु पर यात्रा न करें।
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