हाईकोर्ट ने पंचायत चुनावों पर लगाई अस्थायी रोक, आरक्षण नीति पर उठाए सवाल
सरकार से पारदर्शी नीति पेश करने को कहा, चुनाव प्रक्रिया फिलहाल स्थगित
नैनीताल। उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर बड़ा कानूनी घटनाक्रम सामने आया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान फिलहाल पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी। अदालत का यह फैसला राज्य सरकार की ओर से आरक्षण व्यवस्था को लेकर स्पष्ट नीति न पेश कर पाने के चलते आया। कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक पंचायत चुनावों में आरक्षण की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं होगी, तब तक चुनाव प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।
अदालत ने जताई सख्त नाराजगी
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या पंचायत चुनावों में आरक्षण को लेकर कोई ठोस और पारदर्शी नीति तैयार की गई है? इस पर सरकारी पक्ष अदालत को संतोषजनक उत्तर नहीं दे सका। अदालत ने इस स्थिति पर असंतोष जताते हुए निर्देश दिया कि राज्य सरकार शीघ्र ही स्पष्ट और वैध आरक्षण नीति तैयार कर उसे सार्वजनिक करे। कोर्ट ने कहा कि पंचायत चुनावों में पारदर्शिता और सामाजिक न्याय दोनों अनिवार्य हैं और आरक्षण इसी का अहम हिस्सा है।
12 जिलों में रुकी चुनावी प्रक्रिया
राज्य निर्वाचन आयोग ने हाल ही में पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी की थी और 25 जून से नामांकन प्रक्रिया शुरू होने वाली थी। मगर हाईकोर्ट के आदेश के बाद पूरे चुनावी कार्यक्रम पर फिलहाल विराम लग गया है। अब चुनावी कार्यक्रम तभी आगे बढ़ सकेगा जब सरकार अदालत के निर्देशों के अनुसार स्पष्ट आरक्षण नीति पेश करेगी।
विपक्ष ने साधा निशाना
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की प्रशासनिक विफलता करार दिया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा, “यह सरकार की अक्षमता और संवैधानिक जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाही को उजागर करता है। पंचायत चुनावों में सामाजिक न्याय से खिलवाड़ अब अदालत के संज्ञान में आ चुका है।”
अब सबकी नजर सरकार की अगली रणनीति पर
इस घटनाक्रम के बाद अब राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह अदालत की अपेक्षाओं पर खरा उतरे और शीघ्र ही आरक्षण नीति को कानूनी वैधता और पारदर्शिता के साथ सामने लाए। वहीं निर्वाचन आयोग को भी अब भविष्य की चुनावी रूपरेखा अदालत की हरी झंडी मिलने के बाद ही तय करनी होगी।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला पंचायत चुनावों की समय-सीमा ही नहीं, बल्कि पंचायतों में सत्ता संतुलन और प्रतिनिधित्व के समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।
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