पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट की रोक जारी, बुधवार को स्टे हटाने पर अहम फैसला

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पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट की रोक कायम, बुधवार को स्टे हटाने पर अहम सुनवाई

देहरादून। उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर अनिश्चितता का साया फिलहाल बरकरार है। राज्य में पंचायत चुनावों को लेकर मचे राजनीतिक और प्रशासनिक घमासान के बीच सोमवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया पर लगाई गई अंतरिम रोक को यथावत रखते हुए अगली सुनवाई बुधवार दोपहर को करने का निर्णय लिया है। राज्य सरकार ने स्टे हटाने की गुहार मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ से की थी, लेकिन अदालत ने तत्काल राहत देने से इनकार करते हुए मामले की गंभीरता को देखते हुए विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता बताई।

12 जिलों में प्रस्तावित था चुनाव, न्यायालय की रोक से अटका कार्यक्रम

राज्य निर्वाचन आयोग ने 21 जून को 12 जिलों में पंचायत चुनावों का कार्यक्रम घोषित किया था। इसके तहत 25 जून से नामांकन प्रक्रिया शुरू होनी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने आरक्षण प्रणाली में गड़बड़ियों को लेकर तल्ख टिप्पणियां करते हुए सोमवार को पूरे चुनावी कार्यक्रम पर रोक लगा दी। इससे सरकार और प्रशासन दोनों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

सरकार ने मामले में तत्परता दिखाते हुए स्टे हटवाने की कोशिश की, मगर अदालत ने फिलहाल किसी भी तरह की जल्दबाजी से इनकार किया और अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।

सभी याचिकाएं एक साथ सुनी जाएंगी, आरक्षण प्रक्रिया पर उठे सवाल

हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर दायर सभी याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए क्लब कर लिया है। याचिकाओं में आरोप है कि पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण रोस्टर तैयार करने और अधिसूचना जारी करने में तय नियमों और प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है। इससे न केवल आरक्षण की वैधता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि पूरी चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और संवैधानिकता भी संदिग्ध हो गई है।

कोर्ट ने राज्य सरकार को बुधवार की सुनवाई में विस्तृत जवाब और दस्तावेज पेश करने के निर्देश दिए हैं, ताकि यह तय हो सके कि चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए या रोक को जारी रखा जाए।

नौकरशाही की भूमिका पर भी उठे सवाल

इस पूरे प्रकरण में विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए नौकरशाही पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आरक्षण प्रक्रिया संवेदनशील और तकनीकी विषय है, जिसे लेकर सरकार को पहले से पूरी तैयारी करनी चाहिए थी। तय प्रक्रिया का पालन न होने से अब पंचायत चुनावों पर समय संकट खड़ा हो गया है।

चुनावी तैयारियों पर असर, प्रत्याशियों में असमंजस

पंचायत चुनावों को लेकर प्रत्याशी और उनके समर्थक तैयारियों में जुटे थे, कई जगह जनसंपर्क और प्रचार अभियान शुरू हो चुके थे। ऐसे में नामांकन प्रक्रिया शुरू होने से ऐन पहले हाईकोर्ट का यह आदेश प्रत्याशियों को असमंजस में डाल गया है। अब सभी की नजरें बुधवार की सुनवाई पर टिकी हैं, जो चुनावी प्रक्रिया की दिशा तय करेगी।

यह मामला केवल पंचायत चुनावों तक सीमित न रहकर अब राज्य सरकार की संवैधानिक प्रक्रियाओं के प्रति जवाबदेही और प्रशासनिक तैयारियों की परीक्षा बन चुका है।

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