भ्रष्टाचार के घेरे में IFS अधिकारी, शासन ने मांगा स्पष्टीकरण

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IFS अधिकारी विनय कुमार भार्गव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप, विभाग ने थमाया कारण बताओ नोटिस

भारतीय वन सेवा (IFS) के वरिष्ठ अधिकारी विनय कुमार भार्गव पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं और विभागीय नियमों की अनदेखी के आरोप लगे हैं। इन आरोपों के चलते प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है। नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि अधिकारी को 15 दिनों के भीतर इन आरोपों पर संतोषजनक उत्तर प्रस्तुत करना होगा, अन्यथा उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

विनय कुमार भार्गव वर्तमान में कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट के पद पर कार्यरत हैं और यह पूरा मामला उस समय का है जब वह वर्ष 2019 में पिथौरागढ़ जिले में प्रभागीय वनाधिकारी (DFO) के रूप में तैनात थे। जांच में पाया गया है कि उन्होंने बिना विभागीय स्वीकृति और टेंडर प्रक्रिया के पालन के कई पक्के निर्माण कार्य कराए। इनमें डोरमेट्री का निर्माण, वन कुटीर उत्पाद विक्रय केंद्र, 10 इको हट्स तथा एक ग्रोथ सेंटर का निर्माण शामिल है।

सबसे अहम बात यह है कि इस पूरे प्रकरण का खुलासा भी एक अन्य वरिष्ठ IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी द्वारा की गई विस्तृत जांच के माध्यम से हुआ है। संजीव चतुर्वेदी ने इस मामले की तह तक जाकर वन मुख्यालय से लेकर राज्य शासन तक सभी संबंधित अधिकारियों को लिखित रूप में पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया। बताया गया है कि उन्होंने दिसंबर 2024 में इस मामले को प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) के समक्ष प्रस्तुत किया था, जिसके बाद जनवरी 2025 में उन्होंने पुनः इस मामले को शासन के समक्ष रखा और तत्कालीन DFO विनय कुमार भार्गव के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करने की अनुशंसा की।

जांच रिपोर्ट के अनुसार, भार्गव पर यह भी आरोप है कि उन्होंने एक निजी संस्था का चयन निर्माण कार्यों के लिए बिना किसी टेंडर प्रक्रिया और सक्षम स्वीकृति के किया, साथ ही संस्था को एकमुश्त भुगतान भी कर दिया। इसके अलावा उन्होंने मुनस्यारी के पर्यटन विभाग द्वारा प्राप्त धनराशि का 70% हिस्सा उक्त संस्था को देने हेतु अनुबंध भी किया, जबकि इसके लिए किसी प्रकार की पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।

फायर लाइन के कार्यों में भी भारी अनियमितता सामने आई है। पिथौरागढ़ में निर्धारित कार्य योजना के अनुसार फायर लाइन की कुल लंबाई 14.6 किलोमीटर तय की गई थी, लेकिन 2020-21 में बिना अनुमति 90 किलोमीटर क्षेत्र में कार्य कर ₹2 लाख की धनराशि व्यय कर दी गई। यह सीमा कार्य योजना से कई गुना अधिक थी।

इस प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने इस पूरे मामले को न केवल विभाग के भीतर प्रमुख अधिकारियों के समक्ष रखा, बल्कि शासन को भी सूचित किया। उन्होंने इसे गंभीर भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखते हुए कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला नियमों की अवहेलना, वित्तीय पारदर्शिता की कमी और पर्यावरणीय संसाधनों के दुरुपयोग से जुड़ा हुआ है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

वहीं इस प्रकरण में जब संजीव चतुर्वेदी से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में आने के बाद पूरी प्रक्रिया के तहत जांच की गई और समय रहते संबंधित अधिकारियों को सूचित किया गया। उन्होंने कहा कि इस मामले में लिखित रूप से प्रमुख वन संरक्षक और शासन को जानकारी देकर आवश्यक कार्रवाई का अनुरोध किया गया।

अब जब शासन ने इस पूरे मामले का संज्ञान लिया है और कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया है, तो आने वाले समय में इस प्रकरण में और भी अहम खुलासे और प्रशासनिक कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है। विभाग की साख और शासन की पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए इस मामले को एक उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे स्पष्ट संदेश जाए कि सेवा में रहते हुए किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार या नियमों की अवहेलना बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

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