ईष्ट देवता की कृपा से कोरोना को हराया, सोशल मीडिया पर भावुक हुए पूर्व सीएम हरीश

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बहुत घातक रही। मैं भी इस लहर की चपेट में आया। यूं मैं किसी को दोष नहीं दे सकता। मेरी अपनी लापरवाही मुझे और मेरे परिवार को रुकोरोना संक्रमण की चपेट में लायी। मैं दुनिया भर को सीख देता-फिरता था कि कोरोना में सावधानी बरतिये। घर से बाहर न निकलिये, सेल्फ कर्फ्यू में अपने को बांधिये, यदि दो बार निकलना आवश्यक है तो एक बार निकलिये, मगर मैं अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाया। सार्वजनिक सभाओं में भी गया, सार्वजनिक अवसरों पर भी मैंने उपस्थिति दर्ज करवायी, राजनैतिक काम के लिये रुपंजाब का व्यापक दौरा भी किया, दिल्ली भी गया, हरिद्वार भी गया और अपने नींबू पार्टी के शौक को पूरा करने के लिये चण्डीगढ़, ढंढेरा और देहरादून सबके लिये, सबके साथ नींबू सन्नी के चटकारे भी लिये। फिर बकरे की माॅ कब तक खैर मनाती। मैं कोरोना की चपेट में आ ही गया। 23 मार्च, 2021 को मुझे थोड़ा ऐहसास हुआ कि मैं कहीं कोरोना की चपेट में तो नहीं आ गया हॅू! मैं दूर लैन्सडाउन से आया और हरिद्वार होते हुये देहरादून पहुंचा, होली मिलन समारोह में भी भाग लिया। कुछ झुर-झुरी आने पर मैंने टेस्ट कराना मुनासिफ समझा और जब टेस्ट में कोरोना संक्रमित पाया गया और मेरे परिवार के कुछ सदस्य भी कोरोना संक्रमित पाये गये तो मैं तत्काल दून मेडिकल काॅलेज गया, वहां मेरा सिटी स्कैन करवाया गया, जिसमें संक्रमण गम्भीर लगा। मुझे 24 मार्च को दोपहर बाद एयर एम्बुलेंस से दिल्ली को रवाना होना पड़ा और सीधे एम्स में भर्ती हुआ। एक-दो घंटा प्रारम्भिक जांचों को करने के बाद एम्स के चिकित्सक भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मेरी स्थिति गम्भीर है और मुझे सीधे आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। 19 दिन मैं एम्स के आईसीयू वार्ड में भर्ती रहा। पहले 5 दिन मेरी स्थिति बहुत चिन्ताजनक रही, मुझे खुद अपने ऊपर आगे भारी खतरे का एहसास था। डाक्टर्स जिस तरीके से आक्सीजन लेबल की बात करते थे और जिस प्रकार मुझे एक के बाद एक इंजेक्शन लगाये गये, वो कोरोना संक्रमण की स्थिति को बयां करने के लिये काफी थे। लेकिन मैंने प्रारम्भिक दो दिन तक नित्यक्रम के लिये टाॅयलेट जाना ही पसंद किया और मैं आक्सीजन उतार कर के चला जाता था। डाॅक्टर्स ने मुझे मेरी गम्भीरता का एहसास करवाया, और मेरे लिये बेड के पास ही में सारी व्यवस्थाएं की गई। मैं बहुत आभारी हॅू जो स्नेह, प्यार मुझको डाॅक्टर्स से, विशेष तौर पर नर्सिंग स्टाफ व अटेंडेंट से मिला, जितना आदर उन्होंने दिया, जिस तत्परता के साथ खाली इसारे पर तैयार रहते थे। मैं जीवन के उस समर्पण, सेवा भाव को कभी नहीं भूल सकता।

मैं प्रथम तीन दिन बहुत अचेत अवस्था में रहा है बल्कि मुझे बड़ा आश्चर्य होता है, जब मैं कभी-2 अखबारों में पढ़ता हॅू कि सल्ट विधानसभा के रुकांग्रेस उम्मीदवार के चयन में हरीश रावत की चली। जबकि हकीकत यह है कि रुहरीशऋरावत उस समय एम्स में अपने जीवन की चला-चली का आभास कर कभी-2 अचेत स्थिति में आ जाता था। हाॅ इतना जरूर है कि मैंने एम्स के चिकित्सा बेड से भी मेरा कांग्रेस के कायकर्ता व नेता के तौर पर जो कर्तव्य था और गंगा जो संयोग से सल्ट से कांग्रेस की उम्मीदवार थी, उसके लिये वात्सल्य भाव था मेरे मन में उस सब का असर था कि टूटती हुई सांसों के साथ भी एक वीडियो बनाया था जिसमें अपील की थी सल्ट के मददताओं से गंगा को विजय बनाने के लिये की, उसको आप सबके साथ साझा किया। फिर मैंने एक दूसरा वीडियो भी बनाया, पहलेे से कुछ सुधरी हुई स्थिति में आ गया था, खैर सल्ट की चुनाव की बात को एक तरफ रखकर मैं अपने कुल देवता, ईष्ट देवता, भगवान का बहुत आभारी हॅू कि उन्होंने मेरे अन्दर इतना साहस दिया कि मैंने आसन्न मृत्यु के अवसाद को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। एक दिन सीनियर डाक्टर्स टीम को चलते-2 मैंने सुना कि भय इनके ऑक्सीजन को जो मैक्सिमम सेचुरेशन हो सकता है वो हम इनके दे रहे हैं। अब क्या दूसरा तरीका हो सकता है कि इनके ऑक्सीजन की आवश्यकता को थोड़ा कम किया जा सके और इनके फेफड़ों को स्वभाविक शक्ति दी जा सके तो उनमें से एक डाॅक्टर ने कहा कि इनको पेट के बल लेटने की सलाह देनी चाहिये, ये पेट के बल लेटें। मैंने मन में निश्चय किया, नहीं मुझे जिन्दा रहना है, क्योंकि में अखबारों में पढ़ता था कि कोरोना संक्रमण से मरे व्यक्ति को उसके पुत्र अग्नि देने को तैयार नहीं हो रहे हैं, स्वजन उसको छूने को तैयार नहीं, कई मामलों में रुसमाचारऋपत्रों में छपता था कि वहां मुश्लिम भाई आगे आये और उन्होंने कन्धा देकर के मृतक शमशान घाट तक पहुंचाया, स्वजन रास्ते से ही वापस लौट गये। मरने के बाद जो हड्डियों को चुनकर के गंगा जी में प्रवाहित करने का जो सामान्य चलन है, लोग उसको भी भूल गये। केवल मुंडन कर्म आदि की जो औपचारिकता है, उसको निभाकर के ही लोगों ने यह समझ लिया कि हमने बुजुर्गों, स्वजन के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है। जिस माॅ ने 9 महिने अपनी कोक में पाला लोग उस माॅं को कंधा देने के लिये तैयार नहीं हुये। क्योंकि एक भय था मन में, लोगों के मन में एक आशंका, डर हावी हो गई थी। लोग कोरोना संक्रमित व्यक्ति, चाहे उनका कितना ही नजदीक का हो उसके निकट जाने में घबराते थे। ऐसा नहीं है कि सब ऐसा कर रहे थे, बहुत सारे लोग, बच्चे व परिवारों के लोगों ने अपने को खतरे में डालकर के अपने स्वजनों की ही नहीं बल्कि अपने मित्रों की भी सेवा करने का काम किया। मगर बहुत सारे ऐसे मामले अखबारों में सुर्खियां पाते थे और मैं भी उनको पढ़ता था, थोड़ा दुःख भी होता था और वो व्यक्ति जो अपने स्वजनों का बिना कंधा पाये चिता की अग्नि में होम हो जाते थे, उनके लिये दुःख भी होता था। जिनको अपनों की लकड़ी नहीं मिल पाती थी, उनके लिये बड़ा मलाल मन में रहता था। लेकिन जब मैं कोरोना से गम्भीर रूप से संक्रमित हो गया, मेरी पत्नी भी संक्रमित होकर के उसी एम्स में भर्ती थी। लेकिन मुझे जानकारी मिलती रहती थी कि उनका स्वास्थ्य सही है। लेकिन मेरी हालत दिन प्रति दिन गम्भीर होती जा रही थी जिसको मैं अपनी पत्नी से भी छिपाने का काम करता था। मैं कहता था कि उन तक यह खबर नहीं पहुंचनी चाहिये।

मेरे मन एक भाव आया जब मैंने डाॅक्टर्स को बात करते सुना कि हरीश रावत तुम भी अब उसी रास्ते पर जा रहे हो, तुमको अपनों का कंधा शायद नहीं मिल पायेगा, अपनों की लकड़ी नहीं मिल पायेगी, कोरोना संक्रमित होकर के यदि तुम रुकालकल्वित होते हो तो फिर शायद अपने गाॅव का शमशान भी तुमको नसीब नहीं होगा। अपने गाॅव की त्रिवेणी का पानी भी तुमको नसीब नहीं होगा, अपने शिवालय के तुमारा शव दर्शन भी नहीं कर सकेगा तो मुझे मन फूक सी उठती थी और उसी ने मेरे मन में एक अजीब सा संकल्प भर दिया और मैं न केवल पेट बल लेटने लगा, बल्कि लगातार लेटे रहने की कोशिश करता था और जब मैं पहले दिन लेटा तो 3-4 प्वाइंट को सुधार आ गया आक्सीजन के लेवल पर, तो डाॅक्टर्स ने आश्चर्य भी व्यक्त किया, मैं उस समय तक बात करने की स्थिति में नहीं था। उन्होंने कहा कि यदि ये संक्रमण से बाहर निकलेंगे तो अपनी ही आंत्रिक आत्मबल से निकलेंगे, उनके शब्दों ने मुझे और प्रेरित किया, रात को मेरी नींद जब भी खुलती थी तो मैं फिर से पेट के बल लेट जाता था और ऐसा मैंने 4 दिन लगातार किया, उससे ऑक्सीजन के लेवल में कुछ सुधार आया, जो मुझे आर्टीफिशियल तरीके से रुऑक्सीजन दी जा रही थी उसकी मात्रा कुछ घटाई गई। जब उसकी मात्रा कुछ घटाई गई तो डाॅक्टर्स ने कहा कि अब हमको उम्मीद हो गई शायद आपको खतरे से बाहर ले आयें, फिर भी उन्होंने शायद शब्द का उपयोग किया और उन्होंने मुझे एक बार नहीं बल्कि दो बार प्लाज्मा चढ़ाया और दूसरे एक्सपर्टस को बुलाकर के भी मुझे दिखाया, मेरी स्थिति की जो स्टेट्स रिर्पोट थी, उसको उन्होंने बाहर के एक्सपर्टस को भी लाइन में लेकर के ट्रीटमेंट की लाइन पर बातचीत की और मैं उन डाॅक्टर्स को जो जितनी रूचि मुझको बचाने में ले रहे थे, यूं तो डाॅक्टर्स हर किसी मरीज को बचाने का काम करते हैं, डाॅक्टर्स देवता के समान है। क्योंकि वो आसन्न मृत्यु से लड़ता है। मेरे सामने भी वो मुझको बचाने के लिये आसन्न मृत्यु से लड़ रहे थे और जो जानकारियां वो लेते थे उसके अनुसार मेरी ट्रीटमेंट लाइन में परिवर्तन भी किया गया। मगर जब मुझे थोड़ा सा होश बढ़ने लगा, जब मैं अपने हाथों को, बाहों को, कमर को, पेट को सब छिदा हुआ देखता था तो मुझे बड़ी पीड़ा होती थी, बड़ी अजीब सी स्थिति में था। मैं ठीक से कुल्ला भी नहीं कर पाता था, वैसे ही लेटे रहता था, किसी तरीके से मैं पोटी इत्यादि करता था और उसमें भी मुझको दो-दो लोग सहारा देने का काम करते थे, मैं बहुत विपन्न अवस्था में था। मगर 8वें दिन से मैंने टेलीफोन पर थोड़ी बातचीत करना प्रारम्भ की और 10वें दिन से मैंने कांग्रेस के बहुत से रुकार्यकर्ताओं से बातचीत की और उनसे सल्ट के उपचुनाव के महत्व के विषय में अपने भाव बताये और उनको प्रेरित करने का काम किया कि वो लगें और किसी तरीके से लड़ें और मुझे मालूम था कि हमारी प्रत्याशी बहुत सामान्य परिवार की है, उसके लिये संसाधन जुटाना कठिन है। उसके लिये मैंने अपने पंजाब के कुछ मित्रों से अनुरोध किया किसी ने 10 हजार, किसी ने 20 हजार, कुछ पैसे भेजे, मैं उनका भी बड़ा आभारी हॅू। लेकिन उस समय तक मैं इस स्थिति में आ गया था कि मुझे लगता था कि अब मैं खतरे से बाहर निकल आया हॅू और जब मैं अपने छिदे हुये शरीर, हाथों को, दवाइयों की मात्रा को, सब चीजों पर मैं पीछे की तरफ देखता था, तो मुझे लगता था कि जिस दिन मैंने अपने अचेत अवस्था में अपना वीडियो बना रहा था। मैंने अपने ईष्ट देवता का स्मरण करते हुये कहा था, हे ईष्ट देव यदि मैंने हमेशा आपके चरणों में निष्ठा रखी है तो कम से कम मेरी मौत कोरोना संक्रमण से न हो और मैं कोरोना संक्रमण से बाहर निकलकर के एक स्वभाविक मौत मरूं ताकि मैं अपने स्वजनों, अपने ईष्ट मित्रों, दोस्तों, अड़ोसियों-पड़ोसियों, अपने चाहने वाले लोगों के कंधों पर अपनी अन्तिम यात्रा में जा सकूं। क्रमशः….हरीश रावत

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