बदरीनाथ हाईवे पर सिरोबगड़ लैंडस्लाइड जोन को बाईपास करेगा नया मार्ग, भारत सरकार ने दी मंजूरी
देहरादून। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा मार्ग और सीमांत क्षेत्रों को जोड़ने वाला बदरीनाथ नेशनल हाईवे (एनएच-7) लंबे समय से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता रहा है। इस हाईवे का सबसे संवेदनशील और खतरनाक हिस्सा सिरोबगड़ लैंडस्लाइड जोन है, जहां भूस्खलन की घटनाएँ दशकों से लगातार चुनौती बनी हुई हैं। अब केंद्र सरकार ने इस खतरनाक जोन को पूरी तरह बाईपास करने के लिए वैकल्पिक मार्ग के निर्माण को मंजूरी दे दी है। यह फैसला राज्य के लोगों और बदरीनाथ धाम समेत चारधाम यात्रियों के लिए बड़ी राहत की खबर है।
छह दशक पुरानी समस्या
सिरोबगड़ लैंडस्लाइड जोन पिछले लगभग 60 वर्षों से एक गंभीर समस्या बना हुआ है। हर साल मानसून के दौरान यहां बड़े पैमाने पर मलबा और पत्थर गिरने की घटनाएं होती हैं, जिससे सड़क बार-बार बंद होती है। अब तक यहां कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और लाखों की आर्थिक क्षति हो चुकी है। यह जोन खासतौर पर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब और सीमांत क्षेत्रों जैसे भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाले मुख्य हाईवे पर स्थित है।
यहां भूगर्भीय संरचना बेहद जटिल और अस्थिर है। चट्टानों की परतें कमजोर हैं और लगातार बारिश से मिट्टी में पानी भरकर उसे खिसकने के लिए प्रेरित करता है। इस क्षेत्र की भू-संरचना ऐसी है कि अब तक किए गए सभी तकनीकी उपचार (Slope Stabilization, Rock Bolting, Retaining Walls आदि) स्थायी समाधान साबित नहीं हो पाए हैं।
अधर में लटका पुल प्रोजेक्ट
स्थिति को देखते हुए कुछ वर्ष पहले सिरोबगड़ जोन से पहले एक पुल निर्माण की योजना शुरू की गई थी, ताकि हाईवे के इस हिस्से को बाईपास किया जा सके। लेकिन निर्माण के दौरान तकनीकी समस्याएं, जैसे अस्थिर भू-संरचना और बेहद ऊंची लागत, सामने आईं, जिसके चलते परियोजना रोकनी पड़ी। नतीजा यह रहा कि हाईवे हर बार भूस्खलन की चपेट में आकर ठप हो जाता था।
केंद्र सरकार की मुहर
अब हाल ही में भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) की एक उच्च स्तरीय बैठक में इस समस्या को गंभीरता से लिया गया। बैठक की अध्यक्षता मंत्रालय के विभागीय सचिव ने की, जिसमें उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग (PWD) के सचिव समेत वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। बैठक में निर्णय लिया गया कि सिरोबगड़ जोन को पूरी तरह बाईपास करने के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाया जाएगा।
इस निर्णय के तहत पीडब्ल्यूडी को निर्देश दिया गया है कि वह जल्द से जल्द विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करे। प्रारंभिक आकलन के अनुसार, नया बाईपास मौजूदा हाईवे से कई किलोमीटर दूर अपेक्षाकृत स्थिर पहाड़ी भूभाग से होकर निकाला जाएगा। हालांकि इसके लिए सुरंगों और ऊंचे रिटेनिंग स्ट्रक्चर (Retaining Structures) का निर्माण करना पड़ सकता है, जिससे परियोजना की लागत काफी अधिक आंकी जा रही है।
तीर्थयात्रियों और स्थानीयों को राहत
इस बाईपास के निर्माण से न सिर्फ स्थानीय लोगों को बल्कि बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली, जोशीमठ जैसे पर्यटन और तीर्थ स्थलों की यात्रा करने वाले लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी बड़ी राहत मिलेगी। मानसून के महीनों में सिरोबगड़ पर मलबा गिरने से अक्सर हाईवे कई-कई दिनों तक बंद रहता है, जिससे न केवल आवाजाही ठप होती है, बल्कि पर्यटन और व्यापार पर भी बुरा असर पड़ता है।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस बाईपास से यात्रा का समय भी घटेगा और दुर्घटनाओं की आशंका कम होगी। साथ ही, राज्य के सीमांत क्षेत्रों की सामरिक दृष्टि से भी यह परियोजना महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
राज्य सरकार और स्थानीय जनता लंबे समय से सिरोबगड़ जैसे खतरनाक भूस्खलन क्षेत्र के स्थायी समाधान की मांग कर रही थी। केंद्र सरकार की ओर से मंजूरी मिलने के बाद उम्मीद की जा रही है कि परियोजना पर तेजी से अमल होगा और अगले कुछ वर्षों में यह मार्ग यात्रियों के लिए खुल जाएगा।
Leave a Reply