लेखक गाँव थानो: साहित्य, संस्कृति, और कला का संगम – जस्टिस सुधांशु धूलिया

थानो-भारत का साहित्य, संस्कृति, और कला महोत्सव ‘स्पर्श हिमालय’ इस वर्ष विशेष महत्व रखता है, जो उत्तराखंड के थानों में स्थित देश के पहले लेखक गाँव में आयोजित किया गया। इस महोत्सव का उद्देश्य भारतीय साहित्य, संस्कृति, और कलाओं को एक मंच पर लाना और इनकी विविधता, गहराई, और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना है। महोत्सव में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने “भारतीय भाषाएं एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” पर अपने गहन विचार साझा किए, जो भारतीय भाषाई विविधता, इसके महत्व, और शिक्षा सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

भाषाई विविधता: भारतीय संस्कृति की आत्मा

जस्टिस धूलिया ने भारत की भाषाई विविधता को राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए इसे हमारी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग कहा। उन्होंने बताया कि भारत में केवल थोड़ी सी दूरी पर भी भाषा, खानपान, संगीत, और संस्कृति बदल जाते हैं, जो इस देश की समृद्धि का प्रतीक है। भारत में संविधान के 8वें शेड्यूल के अंतर्गत 22 मान्यता प्राप्त भाषाएं हैं, जिनमें हिंदी, संस्कृत, उर्दू, तमिल, मलयालम, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, और मराठी जैसी प्रमुख भाषाएं शामिल हैं। धूलिया ने इस पर गर्व जताया कि इन भाषाओं ने हमारी पहचान को समृद्ध किया है और संविधान ने इन्हें सम्मानित किया है। उनका मानना है कि हिंदी का विकास सरकार की पहल से अधिक, हिंदी फिल्मों, गीतों, और सांस्कृतिक साधनों से हुआ है, जो हमें एकता के सूत्र में पिरोते हैं।

भाषा का स्वाभाविक प्रचार: व्यक्तिगत अनुभव से प्रेरणा

अपने व्यक्तिगत अनुभव का एक प्रेरणादायक प्रसंग साझा करते हुए जस्टिस धूलिया ने बताया कि 30 साल पहले बद्रीनाथ यात्रा के दौरान एक दक्षिण भारतीय सज्जन ने उन्हें हिंदी के प्रति अपने समर्थन का परिचय दिया। यह अनुभव उनके लिए एक महत्वपूर्ण सीख थी कि भाषा का प्रचार-प्रसार स्वाभाविक रूप से होना चाहिए न कि सरकारी हस्तक्षेप से। धूलिया ने हिंदी को एक ऐसी भाषा बताया, जिसने बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी पहचान बनाई है और आज भारतीय विविधता को जोड़ने का माध्यम बनी है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: शिक्षा सुधार का आधार

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए जस्टिस धूलिया ने इसके पाँच स्तंभ – पहुंच, समता, गुणवत्ता, वहनीयता, और जवाबदेही – को शिक्षा सुधार का आधार बताया। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और भारतीय शिक्षा सेवा (Indian Education Service) की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया। जस्टिस धूलिया ने पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को इस नीति में सुधारवादी सोच को शामिल करने के लिए बधाई दी। उनका मानना है कि शिक्षा में ठोस बदलाव ही देश को उन्नति के पथ पर ले जा सकता है।

भाषाओं का संवैधानिक संरक्षण और बहुभाषी पहल

जस्टिस धूलिया ने संविधान में भाषा संबंधी प्रावधानों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आर्टिकल 343 में हिंदी को राजकीय भाषा घोषित किया गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की कार्य भाषा आर्टिकल 348 के तहत अंग्रेजी रखी गई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के “सुवास” ऐप का जिक्र किया, जो न्यायिक फैसलों के अनुवाद की पहल को दर्शाता है, जिसमें 18 भारतीय भाषाओं में अनुवाद की सुविधा दी गई है। यह कदम भारतीय भाषाओं के सम्मान और प्रचार का प्रतीक है।

लेखक गाँव थानों: साहित्य का नया अध्याय

इस वर्ष ‘स्पर्श हिमालय’ का आयोजन उत्तराखंड के थानों में स्थित पहले लेखक गाँव में किया गया, जो साहित्य, कला, और संस्कृति को समर्पित एक अनूठी पहल है। जस्टिस धूलिया ने लेखक गाँव के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह स्थान न केवल साहित्यकारों के लिए एक आश्रय स्थल है, बल्कि यहां साहित्यिक संवाद और सांस्कृतिक संवर्धन के लिए एक आदर्श वातावरण भी प्रदान करता है। इस महोत्सव की संकल्पना के पीछे डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का योगदान रहा है, जिनकी दूरदृष्टि ने इसे साकार किया।

स्पर्श हिमालय महोत्सव और लेखक गाँव थानों की यह पहल हमारे देश की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को एक नई दिशा देने का कार्य कर रही है। यह महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि साहित्य, कला, और संस्कृति को एक सूत्र में बांधने का माध्यम है। जस्टिस धूलिया का संदेश हमें यह स्मरण कराता है कि हमारी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत है, और शिक्षा और साहित्य में सुधार से ही एक सशक्त, सुसंस्कृत, और समृद्ध भारत का निर्माण संभव है।

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