शिक्षकों का विरोध: इंक्रीमेंट से जुड़े शासनादेश को बताया भेदभावपूर्ण

चयन प्रोन्नत वेतनमान पर इंक्रीमेंट न देने सम्बन्धी शासनादेश के खिलाफ भड़के शिक्षक

देहरादून। शिक्षक चयन प्रोन्नत वेतनमान पर इंक्रीमेंट न देने सम्बन्धी शासनादेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा। एससीईआरटी अध्यक्ष विनय थपलियाल ने बताया कि सातवें पे कमीशन की सिफारिश के अनुसार प्रदेश के 1.5 लाख कर्मचारियों एवं 50 हजार निगम कर्मचारियों को चयन प्रोन्नत वेतनमान पर इंक्रीमेंट दिया जा रहा है। लेकिन सिर्फ शिक्षकों को इससे वंचित करना सरकार की हठधर्मिता को ही दर्शाता है। जिसके खिलाफ शिक्षक सड़क से लेकर कोर्ट तक की लड़ाई लड़ेंगे। चुनावी साल में शिक्षकों की यह जंग परेशानी का सबब बन सकती है।

1. समस्या का कानूनी स्वरूप

उत्तराखंड वेतन नियमावली, 2016 में चयन प्रोन्नत वेतनमान पर सभी राज्य कर्मियों (शिक्षक सहित) को वार्षिक वेतनवृद्धि मिलती थी।

इस संशोधन में यह वेतनवृद्धि केवल शैक्षणिक संवर्ग (शिक्षकों) के लिए हटा दी गई, जबकि अन्य संवर्गों को मिलती रहेगी।

यह स्थिति संवैधानिक समानता के सिद्धांत पर सीधा प्रश्न खड़ा करती है।

  1. संविधान के प्रमुख उल्लंघन

(क) अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार

“समान परिस्थितियों में समान व्यवहार”

शिक्षक भी राज्य कर्मी हैं
चयन प्रोन्नत वेतनमान सभी के लिए एक समान अवधारणा है। केवल शिक्षकों को अलग कर देना मनमाना (Arbitrary Classification) माना जाएगा।

जब तक राज्य यह सिद्ध न करे कि शिक्षकों को अलग रखने का कोई ठोस, तर्कसंगत और सार्वजनिक हित में कारण है, तब तक यह संशोधन असंवैधानिक माना जा सकता है।

(ख) अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक सेवा में समान अवसर

सेवा शर्तों में भेदभाव समान पद/स्थिति में असमान लाभ यह सेवा में समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

(ग) वैध अपेक्षा का सिद्धांत (Doctrine of Legitimate Expectation)

शिक्षक वर्षों से इस वेतनवृद्धि का लाभ लेते आ रहे थे । अचानक बिना ठोस कारण हटा दिया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राज्य मनमाने ढंग से किसी स्थापित सेवा लाभ को नहीं छीन सकता।

  1. सरकार के पास क्या वैध आधार होना चाहिए?
  2. राज्य सरकार तभी ऐसा संशोधन कर सकती है, जब—
  3. स्पष्ट तर्क (Intelligible Differentia) हो
  4. उस तर्क का उद्देश्य से सीधा संबंध हो
  5. निर्णय मनमाना न हो
  6. वित्तीय कारण हों तो
    सभी पर समान रूप से लागू हों

केवल एक वर्ग को लक्षित न करें

यदि ये शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो नियम असंवैधानिक होगा।सरकारी वेतन नियम 2016 के प्रस्तर 13 के उपनियम (I) व (I) जिसके अनुसार 1 जनवरी 2016 को अथवा उसके पश्चात प्रोन्नति पर वेतन निर्धारण/ समयमान /चयन वेतनमान के समय एक वेतन वृद्धि दिए जाने का प्राविधान था को संशोधित कर दिया गया है संशोधित नियम के अनुसार शिक्षकों को चयन वेतनमान /प्रोन्नत वेतनमान के समय एक वेतन वृद्धि (increment) देय नहीं होगी। संशोधित नियम, उत्तराखण्ड सरकारी वेतन (प्रथम संशोधन) नियम 2025 में लिखा है कि यह नियम 1 जनवरी 2016 से प्रवृत्त समझे जायेंगे।

विगत दस वर्षो में उत्तराखण्ड शासन का वित्त अनुभाग-7 यह तय नहीं कर पाया कि करना क्या है बहुत चालाकी से लगभग दस वर्षों बाद वेतन नियम -2016 को संशोधित कर शिक्षकों के वित्तीय हितों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। शिक्षकों को वित्तीय लाभों से वंचित करना तथा अन्य कार्मिकों के विपरीत चयन-प्रोन्नति के मामलों में वेतनवृद्धि से अलग रखना शिक्षक हितों के विरुद्ध है। 2016 में वेतन नियम -2016 लाया गया, इस नियम के प्रस्तर 13 के उप नियम (I) व (I) के अनुसार 1 जनवरी 2016 को अथवा उसके पश्चात प्रोन्नति पर वेतन निर्धारण/ समयमान /चयन वेतनमान के समय एक वेतन वृद्धि दिए जाने का प्राविधान होने के कारण शिक्षकों को एक वेतन वृद्धि दी गयी लेकिन 2019 के शिक्षा विभाग का शासनादेश जिसमें इस बात का उल्लेख नहीं था कि ‘वेतन वृद्धि देय होगा’ के कारण जिन शिक्षकों ने एक वेतन वृद्धि लिया था उनसे वसूली के आदेश हुये। जो शिक्षक वसूली के विरुद्ध माननीय न्यायालय की शरण में गए उनसे वसूली किये जाने पर रोक लग गयी अंततः माननीय उच्च न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला दिए लेकिन जो शिक्षक वसूली के विरुद्ध माननीय न्यायालय में नहीं गए उनकी वसूली की गयी। माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि जिन शिक्षकों से वसूली की गयी है उनको वसूली की धनराशि को वापस किया जाय।
माननीय उच्च न्यायालय के निर्णयानुसार जिन सहायक अध्यापकों को वेतन नियम 2016 के लागू होने की तिथि 01.01.2016 तथा माध्यमिक शिक्षा विभाग के दिनांक 06.09.2019 तथा 13.09.2019 के शासनादेश लागू होने के अवधि के दौरान अतिरिक्त वेतन वृद्धि अनुमन्य की गयी थी के क्रम में अधिक भुगतान की राशि की शिक्षकों से वसूली को स्थगित कर दी गयी है लेकिन आज 2025 में वेतन नियम 2016 में संशोधन किया गया है तथा संशोधित वेतन नियम 2025 में लिखा है कि यह नियम 1 जनवरी 2016 से प्रवृत्त समझे जायेंगे। यह भी आदेश किया गया है कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के 2019 के शासनादेश के अनुसार वेतन का पुनर्निर्धारण किया जाय यह शिक्षकों के हितों के खिलाफ है। जिन शिक्षकों ने वेतन वृद्धि नहीं ली उनको वित्तीय नुकसान होगा। सरकार की इस हठधर्मिता के खिलाफ शिक्षक हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ेंगे।

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